Quran Quote  : 

कुरान मजीद-98:2 सुरा हिंदी अनुवाद, लिप्यंतरण और तफ़सीर (तफ़सीर).

رَسُولٞ مِّنَ ٱللَّهِ يَتۡلُواْ صُحُفٗا مُّطَهَّرَةٗ

लिप्यंतरण:( Rasoolum minal laahi yatlu suhufam mutahharah )

2. अल्लाह के एक रसूल [3], जो पाक साफ़ सहिफ़े [4] पढ़कर सुनाते हैं।

सूरा आयत 2 तफ़सीर (टिप्पणी)



  • मुफ़्ती अहमद यार खान

3. हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की आलमी और हमेशा क़ायम रहने वाली नबूवत

अ. नबूवत: अल्लाह की अमानत
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सिर्फ़ एक क़ौम के लिए नहीं, बल्कि सारी मख़्लूक़ात (हर जीव) के लिए भेजे गए। एक वकील की तरह जो ख़ुद फ़ैसले लेता है, उनके उल्ट पैग़म्बर (सल्ल.) का हर काम, हर बात अल्लाह के हुक्म से थी। उनकी नबूवत अल्लाह की ज़िम्मेदारी का हिस्सा है। उनकी तन्कीद (आलोचना) करना गोया अल्लाह की तन्कीद करने के बराबर है।

ब. नबूवत की हमेशगी
अरबी लफ़्ज़ \"रसूलुन\" (رسولٌ) में तन्वीन (ـٌ) उनके अज़ीम शान और हमेशा क़ायम रहने वाली नबूवत की निशानी है।

क़ब्ल अज़ल: हज़रत आदम (अलै.) के बनने से पहले ही, जब आदम मिट्टी और पानी के दरमियान थे, पैग़म्बर (सल्ल.) को नबी घोषित किया गया।

हर हाल में नबी: सोते, जागते, चलते-फिरते—हर वक़्त उनकी नबूवत क़ायम।

मौत के बाद भी: उनकी हिदायत की रौशनी क़यामत तक रहेगी। मुसलमान उनकी सुन्नत को ज़िंदगी-मौत में भी मानते हैं।

स. सबके लिए हिदायत
क़यामत के दिन, पहले नबी (जैसे मूसा, ईसा अलै.) भी पैग़म्बर (सल्ल.) के \"कलिमा\" (لا إله إلا الله) की गवाही देंगे। उनकी नबूवत इंसानी मंज़ूरी या ताक़त से नहीं, बल्कि अल्लाह के हुक्म से क़ायम है—जैसे सूरज-चाँद को इंसान बुझा नहीं सकता।

द. पैग़म्बर (सल्ल.) की पैरवी: इबादत
उनकी हर आदत, हर सुन्नत को अपनाना इबादत है। उनकी ज़िंदगी इंसानियत के लिए नमूना है, जो अल्लाह से ताल्लुक़ बनाती है।

4. क़ुरआन: हमेशा सुरक्षित वही

अ. पाकिज़गी और कमाल
क़ुरआन पिछली किताबों (तौरात, इंजील) का खुलासा है और:

पाक मक़ाम से: फ़रिश्तों के ज़रिए पैग़म्बर (सल्ल.) के दिल में उतारा गया।

हिफ़ाज़त: अल्लाह ने ख़ुद इसकी हिफ़ाज़त की (सूरह अल-हिज्र 15:9)। ये पाक दिलों, ज़बानों और हाथों में सुरक्षित है।

ब. पैग़म्बर (सल्ल.) की तिलावत: मोजिज़ा

उन्होंने क़ुरआन बिना किसी उस्ताद के याद किया और समझाया।

उनका इल्म (क़ानून, बातिनी मायने, तजवीद) सीधे अल्लाह से था।

आज हम इसे हुफ़्फ़ाज़ (क़ुरआन याद करने वाले) और उलमा से सीखते हैं।

स. क़ुरआन का आसमानी सफ़र
क़ुरआन पहले \"लौह-ए-महफ़ूज़\" (आसमानी किताब) में था, फिर पैग़म्बर (सल्ल.) पर उतारा गया। ये उसकी पाकिज़गी और सारी इंसानियत के लिए हिदायत का सबूत है।

ख़ुलासा

नबूवत का दर्जा: पैग़म्बर (सल्ल.) अल्लाह के आख़िरी और सारे जहाँ के नबी हैं।

क़ुरआन की हिफ़ाज़त: ये अल्लाह का कलाम है, जिसमें कोई तब्दीली नहीं हो सकती।

ज़िंदा रहनुमाई: पैग़म्बर (सल्ल.) की सुन्नत और क़ुरआन पर अमल करना अल्लाह से जुड़ने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा है।

इस तरह, पैग़म्बर (सल्ल.) और क़ुरआन दोनों इंसानियत के लिए अल्लाह की रहमत और हिदायत का सबसे बड़ा सबूत हैं।

Ibn-Kathir

The tafsir of Surah Bayyinah verse 2 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Bayyinah ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 5.

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