लिप्यंतरण:( Wa innahoo feee Ummil Kitaabi Ladainaa la'aliyyun hakeem )
1. मूल पुस्तक से अभिप्राय 'लौह़-मह़फ़ूज़' (सुरक्षित पुस्तक) है। जिससे सभी आकाशीय पुस्तकें अलग करके अवतरित की गई हैं। सूरतुल-वाक़िआ में इसी को "किताब-मक्नून" कहा गया है। सूरतुल-बुरूज में इसे "लौह़-मह़फ़ूज़" कहा गया है। सूरतुश्-शुअरा में कहा गया है कि यह अगले लोगों की पुस्तकों में है। सूरतुल-आला में कहा गया है कि यह विषय पहली पुस्तकों में भी अंकित है। सारांश यह है कि क़ुरआन के इनकार करने का कोई कारण नहीं। तथा क़ुरआन का इनकार सभी पहली पुस्तकों का इनकार करने के बराबर है।
The tafsir of Surah Zukhruf verse 4 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Zukhruf ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 8.
सूरा अज़-ज़ुख़रुफ़ आयत 4 तफ़सीर (टिप्पणी)