लिप्यंतरण:( Fakku raqabah )
यह आयत एक महान नेकी और रहमत (mercy) के काम की बात करती है: ग़ुलामों को आज़ाद करना और दूसरों की तकलीफ़ें कम करना। ग़ुलाम को आज़ाद करने का हुक्म सिर्फ़ उसके बाहरी मायनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कई तरह की मदद और राहत (assistance) को शामिल करता है, चाहे वह शारीरिक हो या आध्यात्मिक।
मूल अर्थ (Literal Meaning)
अपना ग़ुलाम आज़ाद करना:
यह इंसानियत और परहेज़गारी (piety) के इज़हार के तौर पर अपने ग़ुलाम को आज़ाद करने की तरग़ीब देता है।
दूसरों के ग़ुलाम आज़ाद करना:
इसमें दूसरों के ग़ुलामों को आज़ाद करने में माली मदद (financial assistance) या अन्य तरीकों से सहयोग करना शामिल है।
कर्ज़दार को राहत देना:
कर्ज़ के बोझ से दबे हुए इंसान की मदद करके उसका कर्ज़ अदा करना।
मज़लूम क़ैदी को रिहा कराना:
नाइंसाफ़ी से क़ैद किए गए लोगों को आज़ादी दिलाने के लिए आवाज़ उठाना और उनकी रिहाई का इंतज़ाम करना।
मुश्किलें आसान करना:
आर्थिक मदद (financial aid), नैतिक समर्थन (moral support), या शारीरिक सहायता (physical assistance) के ज़रिए मुश्किल हालात में फंसे लोगों की मदद करना।
आध्यात्मिक अर्थ (Spiritual Interpretation)
दिल को नफ़्सानी ख़्वाहिशों से आज़ाद करना:
सूफ़ी बुज़ुर्गों के मुताबिक़, इसका मतलब है दिल को स्वार्थी इच्छाओं (selfish desires) और दुनियावी उलझनों से आज़ाद करना, ताकि आध्यात्मिक तरक्की (spiritual growth) हो सके।
जहन्नम से निजात:
नेकी और इबादत (acts of piety) के ज़रिए आख़िरत (Hereafter) में अज़ाब (punishment) से छुटकारा हासिल करना।
मरहूम की ज़िम्मेदारियों को पूरा करना:
किसी मरहूम (deceased) शख़्स की छूटी हुई नमाज़, रोज़े या दूसरी ज़िम्मेदारियों का फ़िद्या (compensation) अदा करना, ताकि आख़िरत में उनकी ज़िम्मेदारी पूरी हो सके।
व्यापक पहलू (Broader Implications)
The tafsir of Surah Balad verse 13 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Balad ayat 11 which provides the complete commentary from verse 11 through 20.

सूरा आयत 13 तफ़सीर (टिप्पणी)