Quran Quote  : 

कुरान मजीद-90:9 सुरा हिंदी अनुवाद, लिप्यंतरण और तफ़सीर (तफ़सीर).

وَلِسَانٗا وَشَفَتَيۡنِ

लिप्यंतरण:( Wa lisaananw wa shafatayn )

9. और एक जीभ और दो होंठ [9]?

सूरा आयत 9 तफ़सीर (टिप्पणी)



  • मुफ़्ती अहमद यार खान

जीभ की भूमिका और उसकी आध्यात्मिक महत्वता (The Role of the Tongue and Its Spiritual Significance)

यह आयत जीभ की शारीरिक (physical) और आध्यात्मिक (spiritual) महत्वता को रेखांकित करती है। यह मनुष्य के शब्दों (speech) पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता (need) पर जोर देती है और संचार के बाहरी (outer) और आंतरिक (inner) पहलुओं को एकजुट करने की बात करती है, ताकि जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और प्रभावशाली (meaningful and impactful) बनाया जा सके।

आंख और जीभ की तुलना (The Eye vs. The Tongue)

  • आंख दूसरों को देखती है, लेकिन जीभ अपनी स्थिति (condition) के बारे में बोलती है, न कि दूसरों के बारे में। यह दुनिया को देखने और अपनी स्थिति और अनुभवों को व्यक्त करने के तरीके (ways) में एक दिलचस्प (interesting) अंतर (contrast) स्थापित करता है।
  • आंख और जीभ का मिलन मानव अस्तित्व (existence) के दोहरे स्वभाव (dual nature) का प्रतीक है: perception (धारणा) बनाम expression (अभिव्यक्ति)।

जीभ की एकता (Unity of the Tongue)

  • अन्य बाहरी अंगों (outer limbs) के विपरीत, जो जोड़ी (pairs) में होते हैं (जैसे हाथ, पैर), जीभ एकल (singular) होती है, जो यह याद दिलाती है कि व्यक्ति को कम बोलना चाहिए और कार्यों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
  • एक व्यक्ति को अपने शब्दों के प्रति सच्चा (true) होना चाहिए, क्योंकि दोहरी जीभ (double tongue) (जो धोखा देती है या स्वयं से विरोधाभासी (contradicts itself) बोलती है) नफरत (hypocrisy) का प्रतीक (reflection) है।
  • जैसे बाहरी जीभ एकल होती है, वैसे ही आंतरिक जीभ (inner tongue) (हृदय की जीभ) भी एकल होनी चाहिए, अर्थात व्यक्ति के विचार (thoughts) और इरादे (intentions) उनके शब्दों और कार्यों से मेल (consistent) खाने चाहिए।

जीभ का नियंत्रण और जवाबदेही (Control and Accountability of the Tongue)

  • जीभ होंठों (lips) द्वारा घिरी (enclosed) होती है, और इसे तीस दो दांतों (teeth) से संरक्षित (guarded) किया जाता है, ताकि यह संकेत (signifies) दिया जा सके कि असावधान (loose) शब्द हानिकारक (harmful) होते हैं। दांत (teeth) एक शारीरिक (physical) याद दिलाने वाला (reminder) के रूप में कार्य करते हैं कि बोलने में संयम (restraint) और सोच-विचार (thoughtfulness) होना चाहिए।
  • एक नियंत्रणहीन (uncontrolled) जीभ व्यक्ति को न तो अल्लाह (Allah) से और न ही उसके सृजन (creation) से जोड़ पाती है, और यह रिश्तों (relationships) और आध्यात्मिकता (spirituality) को नुकसान (harm) पहुंचाती है।

संचार में जीभ की भूमिका (The Role of the Tongue in Communication)

  • शब्द विभिन्न प्रभावों (influences) को प्रदर्शित (reflect) कर सकते हैं:
    • निम्नतर (baser) आत्मा (self) व्यक्ति की जीभ से बोल सकती है, जिससे नकारात्मक (negative) या स्वार्थी (selfish) भाषण होता है।
    • शैतान (devil) भाषण को प्रभावित (influence) कर सकता है, जिससे व्यक्ति ऐसा बोलता है जो नुकसान (harm) या गुमराही (misguidance) का कारण (cause) बनता है।
    • फरिश्ते (angels) व्यक्ति के माध्यम से बोल सकते हैं, उन्हें अच्छाई (goodness) और सच्चाई (righteousness) की ओर मार्गदर्शन (guide) करते हैं।
    • अंत में, अल्लाह (Allah) स्वयं अपने मार्गदर्शन (guidance) के अनुरूप (alignment) बात करने पर व्यक्ति की जीभ के माध्यम से बोल सकते हैं।

जीभ को ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक (The Tongue as a Manifestation of Divine Power)

  • जीभ अल्लाह के विशेष (special) उपहारों (bounties) में से एक है और यह उसकी ईश्वरीय शक्ति (divine power) का प्रतीक (representation) है। यह संचार का (communication) माध्यम (vehicle) है, चाहे वह सांसारिक (worldly) या आध्यात्मिक (spiritual) मामलों में हो।
  • कुरान (Quran) की आयतें और प्रार्थनाएँ (prayers) गोलियाँ (bullets) के समान होती हैं, जबकि जीभ वह राइफल (rifle) है जो उन्हें चलाती है। एक शुद्ध (pure) जीभ इन प्रार्थनाओं और आयतों की प्रभावशीलता (effectiveness) को बढ़ा देती है।

भाषण की शुद्धता (Purity of Speech)

  • जीभ को शुद्ध करना (purify) व्यक्ति को कुरान (Quran) के प्रकाश (light) को गहरे (deeper) रूप में महसूस (experience) करने में सक्षम (enable) बनाता है।
  • सूफी संतों (Sufi sages) के अनुसार, इस्लाम (Islam) और मार्गदर्शन (guidance) की जीभ कुरान है, और हुजूर-ए-अकरम (ﷺ) के कार्य (actions) और कहानियाँ (sayings) होंठों (lips) के समान हैं। जैसे जीभ बिना होंठों के दिल (heart) के राज (secrets) को व्यक्त (express) नहीं कर सकती, वैसे ही पैगंबर (ﷺ) के कार्य और वचन कुरान के गहरे (deeper) अर्थों को प्रकट करने के लिए आवश्यक (necessary) होते हैं।

Ibn-Kathir

The tafsir of Surah Balad verse 9 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Balad ayat 1 which provides the complete commentary from verse 1 through 10.

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