लिप्यंतरण:( Wallazeenas tajaaboo li Rabbihim wa aqaamus Salaata wa amruhum shooraa bainahum wa mimmaa razaqnaahum yunfiqoon )
29. इस आयत में ईमान वालों का एक उत्तम गुण बताया गया है कि वे अपने प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य परस्पर परामर्श से करते हैं। सूरत आल-इमरान आयत : 159 में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आदेश दिया गया है कि आप मुसलमानों से परामर्श करें। तो आप सभी महत्वपूर्ण कार्यों में उनसे परामर्श करते थे। यही नीति तत्पश्चात् आदरणीय ख़लीफ़ा उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने भी अपनाई। जब आप घायल हो गए और जीवन की आशा न रही, तो आपने छह व्यक्तियों को नियुक्त कर दिया कि वे आपस के परामर्श से किसी को ख़लीफ़ा चुन लें। और उन्होंने आदरणीय उसमान (रज़ियल्लाहु अन्हु) को ख़लीफ़ा चुन लिया। इस्लाम पहला धर्म है जिसने परामर्श की व्यवस्था की नींव डाली। किंतु यह परामर्श केवल देश का शासन चलाने के विषयों तक सीमित है। फिर भी जिन विषयों में क़ुरआन तथा ह़दीस की शिक्षाएँ मौजूद हों उनमें किसी परामर्श की आवश्यकता नहीं है।
The tafsir of Surah Shura verse 38 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Shura ayat 36 which provides the complete commentary from verse 36 through 39.
सूरा अश-शूरा आयत 38 तफ़सीर (टिप्पणी)