लिप्यंतरण:( Izaa tutlaa'alaihi aayaatunaa qaala asaateerul awwaleen )
\"जब हमारी आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं, तो वे कहते हैं: \'ये तो बस अगले लोगों की कहानियाँ हैं।\'\"
🔸 इस आयत में उन इंकार करने वालों के रवैये को बयान किया गया है जो क़ुरआन का मज़ाक उड़ाते और इसे पुराने क़िस्से-कहानियों से तश्बीह देते हैं।
🔹 इस इनकार की वजह से क़ुरआन उनके दिलों पर असर नहीं करता।
🔹 सच्चा ईमान लाने के लिए क़ुरआन पर परियों की कहानियों या आम किताबों की तरह नहीं, बल्कि पूरी ईमानदारी और यक़ीन के साथ विश्वास करना ज़रूरी है।
🔹 क़ुरआन की आयतें कानों से सुनी जाती हैं, लेकिन उसकी हक़ीक़त और रहमत को सिर्फ़ ईमान की रोशनी से ही समझा जा सकता है।
🔸 जो लोग क़ुरआन को महज़ कहानियाँ समझते हैं, वे इसकी हिकमत (दिव्य ज्ञान) को नहीं समझ पाते और हमेशा हिदायत से महरूम रहते हैं।
The tafsir of Surah Mutaffifin verse 13 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Mutaffifin ayat 7 which provides the complete commentary from verse 7 through 17.

सूरा आयत 13 तफ़सीर (टिप्पणी)