يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ ٱتَّقِ ٱللَّهَ وَلَا تُطِعِ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا
ऐ नबी! अल्लाह से डरें, और काफ़िरों तथा मुनाफ़िक़ों का कहना न मानें। निश्चय अल्लाह सब कुछ जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है।[1]
तफ़्सीर:
1. अतः उसी की आज्ञा तथा प्रकाशना का अनुसरण और पालन करो।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 1
وَٱتَّبِعۡ مَا يُوحَىٰٓ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا
तथा उसका अनुसरण करें, जो आपके पालनहार की तरफ से आपकी ओर वह़्य की जा रही है। निश्चय अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखने वाला है, जो तुम कर रहे हो।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 2
وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا
और अल्लाह पर भरोसा रखें तथा अल्लाह संरक्षक के रूप में काफ़ी है।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 3
مَّا جَعَلَ ٱللَّهُ لِرَجُلٖ مِّن قَلۡبَيۡنِ فِي جَوۡفِهِۦۚ وَمَا جَعَلَ أَزۡوَٰجَكُمُ ٱلَّـٰٓـِٔي تُظَٰهِرُونَ مِنۡهُنَّ أُمَّهَٰتِكُمۡۚ وَمَا جَعَلَ أَدۡعِيَآءَكُمۡ أَبۡنَآءَكُمۡۚ ذَٰلِكُمۡ قَوۡلُكُم بِأَفۡوَٰهِكُمۡۖ وَٱللَّهُ يَقُولُ ٱلۡحَقَّ وَهُوَ يَهۡدِي ٱلسَّبِيلَ
अल्लाह ने किसी व्यक्ति के लिए उसके सीने में दो दिल नहीं बनाए, और न उसने तुम्हारी उन पत्नियों को जिनसे तुम ज़िहार करते हो, तुम्हारी माएँ बनाया है, और न तुम्हारे मुँह बोले बेटों को तुम्हारे बेटे बनाया है। यह तो तुम्हारा अपने मुँह से कहना है और अल्लाह सच कहता है तथा वही सीधी राह दिखाता है।[2]
तफ़्सीर:
2. इस आयत का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार एक व्यक्ति के दो दिल नहीं होते, वैसे ही उसकी पत्नी ज़िहार कर लेने से उसकी माता तथा उसका मुँह बोला पुत्र, उसका पुत्र नहीं हो जाता। नबी (सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम) ने नबी होने से पहले अपने मुक्त किए हुए दास ज़ैद बिन ह़ारिसा को अपना पुत्र बनाया था और उनको ह़ारिसा पुत्र मुह़म्मद कहा जाता था। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4782) ज़िहार का विवरण सूरतुल मुजादिला में आ रहा है।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 4
ٱدۡعُوهُمۡ لِأٓبَآئِهِمۡ هُوَ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِۚ فَإِن لَّمۡ تَعۡلَمُوٓاْ ءَابَآءَهُمۡ فَإِخۡوَٰنُكُمۡ فِي ٱلدِّينِ وَمَوَٰلِيكُمۡۚ وَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٞ فِيمَآ أَخۡطَأۡتُم بِهِۦ وَلَٰكِن مَّا تَعَمَّدَتۡ قُلُوبُكُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمًا
उन्हें उनके बापों की ओर मनसूब करके पुकारो। यह अल्लाह के निकट अधिक न्याय की बात है और यदि तुम उनके बापों को न जानो, तो वे तुम्हारे धार्मिक भाई तथा तुम्हारे मित्र हैं। और तुमपर उसमें कोई दोष नहीं है, जो ग़लती से हो जाए, लेकिन (उसमें दोष है) जो दिल के इरादे से करो। तथा अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, अति दयावान् है।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 5
ٱلنَّبِيُّ أَوۡلَىٰ بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ مِنۡ أَنفُسِهِمۡۖ وَأَزۡوَٰجُهُۥٓ أُمَّهَٰتُهُمۡۗ وَأُوْلُواْ ٱلۡأَرۡحَامِ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلَىٰ بِبَعۡضٖ فِي كِتَٰبِ ٱللَّهِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُهَٰجِرِينَ إِلَّآ أَن تَفۡعَلُوٓاْ إِلَىٰٓ أَوۡلِيَآئِكُم مَّعۡرُوفٗاۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مَسۡطُورٗا
यह नबी[3] ईमान वालों पर उनके अपने प्राणों से अधिक हक़ रखने वाले हैं। और नबी की पत्नियाँ उनकी माताएँ[4] हैं। और रिश्तेदार, अल्लाह की किताब के अनुसार, (अन्य) ईमान वालों और मुहाजिरों से एक-दूसरे के अधिक हक़दार[5] हैं। सिवाय इसके कि तुम अपने मित्रों के साथ कोई भलाई करो। यह पुस्तक में लिखा हुआ है।
तफ़्सीर:
3. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा : मैं मोमिनों का अधिक हक़दार हूँ। चाहो तो यह आयत पढ़ लो। अतः जो मोमिन माल छोड़ जाए, वह उसके वारिस का है और जो क़र्ज़ तथा निर्बल संतान छोड़ जाए, तो मैं उसका रक्षक हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4781) 4. अर्थात उनका सम्मान माताओं के बराबर है और आपके पश्चात् उनसे विवाह निषिद्ध है। 5. अर्थात धर्म विधानानुसार उत्तराधिकार समीपवर्ती संबंधियों का है। इस्लाम के आरंभिक युग में हिजरत तथा ईमान के आधार पर एक-दूसरे के उत्तराधिकारी होते थे जिसे मीरास की आयत द्वारा निरस्त कर दिया गया।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 6
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ مِيثَٰقَهُمۡ وَمِنكَ وَمِن نُّوحٖ وَإِبۡرَٰهِيمَ وَمُوسَىٰ وَعِيسَى ٱبۡنِ مَرۡيَمَۖ وَأَخَذۡنَا مِنۡهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا
तथा (याद करो) जब हमने नबियों से उनका वचन[6] लिया। तथा (विशेष रूप से) आपसे और नूह और इबराहीम और मूसा और मरयम के पुत्र ईसा से। और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया।
तफ़्सीर:
6. अर्थात अपना उपदेश पहुँचाने का।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 7
لِّيَسۡـَٔلَ ٱلصَّـٰدِقِينَ عَن صِدۡقِهِمۡۚ وَأَعَدَّ لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابًا أَلِيمٗا
ताकि वह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे[7] तथा उसने काफ़िरों के लिए दर्दनाक यातना तैयार कर रखी है।
तफ़्सीर:
7. अर्थात प्रलय के दिन। (देखिए : सूरतुल-आराफ़, आयत : 6)
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 8
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ جَآءَتۡكُمۡ جُنُودٞ فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا وَجُنُودٗا لَّمۡ تَرَوۡهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرًا
ऐ ईमान वालो! अपने ऊपर अल्लाह के उपकार को याद करो, जब सेनाएँ तुमपर चढ़ आईं, तो हमने उनपर आँधी भेज दी और ऐसी सेनाएँ, जिन्हें तुमने नहीं देखा। और जो कुछ तुम कर रहे थे, अल्लाह उसे खूब देखने वाला था।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 9
إِذۡ جَآءُوكُم مِّن فَوۡقِكُمۡ وَمِنۡ أَسۡفَلَ مِنكُمۡ وَإِذۡ زَاغَتِ ٱلۡأَبۡصَٰرُ وَبَلَغَتِ ٱلۡقُلُوبُ ٱلۡحَنَاجِرَ وَتَظُنُّونَ بِٱللَّهِ ٱلظُّنُونَا۠
जब वे तुमपर, तुम्हारे ऊपर से तथा तुम्हारे नीचे से चढ़ आए, तथा जब आँखें फिर गईं, और दिल गले तक पहुँच गए, तथा तुम अल्लाह के बारे में तरह-तरह के गुमान करने लगे।[8]
तफ़्सीर:
8. इन आयतों में अह़्ज़ाब के युद्ध की चर्चा की गई है। जिसका दूसरा नाम (खन्दक़ का युद्ध) भी है। क्योंकि इसमें ख़न्दक़ (खाई) खोद कर मदीना की रक्षा की गई। सन् 5 हिजरी में मक्का के काफ़िरों ने अपने पूरे सहयोगी क़बीलों के साथ एक भारी सेना लेकर मदीना को घेर लिया और नीचे वादी और ऊपर पर्वतों से आक्रमण कर दिया। उस समय अल्लाह ने ईमान वालों की रक्षा आँधी तथा फ़रिश्तों की सेना भेजकर की। और शत्रु पराजित होकर भागे। और फिर कभी मदीना पर आक्रमण करने का साहस न कर सके।
सूरह का नाम : Al-Ahzab सूरह नंबर : 33 आयत नंबर: 10