कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

حمٓ

ह़ा, मीम।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 1

تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ

इस पुस्तक का अवतरण अल्लाह की ओर से है, जो सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 2

مَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَآ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَأَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ عَمَّآ أُنذِرُواْ مُعۡرِضُونَ

हमने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन दोनों के दरमियान है सत्य के साथ और एक नियत अवधि के लिए पैदा किया है। तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया उस चीज़ से जिससे उन्हें सावधान किया गया, मुँह फेरने वाले हैं।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 3

قُلۡ أَرَءَيۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُواْ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ لَهُمۡ شِرۡكٞ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِۖ ٱئۡتُونِي بِكِتَٰبٖ مِّن قَبۡلِ هَٰذَآ أَوۡ أَثَٰرَةٖ مِّنۡ عِلۡمٍ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ

(ऐ रसूल!) आप कह दें : क्या तुमने उन चीज़ों को देखा जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, मुझे दिखाओ कि उन्होंने धरती की कौन-सी चीज़ पैदा की है, या आसमानों में उनका कोई हिस्सा है? मेरे पास इससे पहले की कोई किताब[1], या ज्ञान की कोई अवशेष बात[2] ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।

तफ़्सीर:

1. अर्थात यदि तुम्हें मेरी शिक्षा का सत्य होना स्वीकार नहीं, तो किसी धर्म की आकाशीय पुस्तक ही से सिद्ध करके दिखा दो कि सत्य की शिक्षा कुछ और है। और यह भी न हो सके, तो किसी ज्ञान पर आधारित कथन और रिवायत ही से सिद्ध कर दो कि यह शिक्षा पूर्व के नबियों ने नहीं दी है। अर्थ यह है कि जब आकाशों और धरती की रचना अल्लाह ही ने की है तो उसके साथ दूसरों को पूज्य क्यों बनाते हो? 2. अर्थात इससे पहले वाली आकाशीय पुस्तकों का।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 4

وَمَنۡ أَضَلُّ مِمَّن يَدۡعُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَن لَّا يَسۡتَجِيبُ لَهُۥٓ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَهُمۡ عَن دُعَآئِهِمۡ غَٰفِلُونَ

तथा उससे बढ़कर पथभ्रष्ट कौन है, जो अल्लाह के सिवा उन्हें पुकारता है, जो क़ियामत के दिन तक उसकी दुआ क़बूल नहीं करेंगे, और वे उनके पुकारने से बेखबर हैं?

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 5

وَإِذَا حُشِرَ ٱلنَّاسُ كَانُواْ لَهُمۡ أَعۡدَآءٗ وَكَانُواْ بِعِبَادَتِهِمۡ كَٰفِرِينَ

तथा जब लोग एकत्र किए जाएँगे, तो वे उनके शत्रु होंगे और उनकी इबादत का इनकार करने वाले होंगे।[3]

तफ़्सीर:

3. इस विषय की चर्चा क़ुरआन की अनेक आयतों में आई है। जैसे सूरत यूनुस, आयत : 290, सूरत मरयम, आयत : 81-82, सूरतुल-अनकबूत, आयत : 25 आदि।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 6

وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ قَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لِلۡحَقِّ لَمَّا جَآءَهُمۡ هَٰذَا سِحۡرٞ مُّبِينٌ

और जब उनके सामने हमारी स्पष्ट आयतें पढ़ी जाती हैं, तो वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया, सत्य के विषय में, जब वह उनके पास आया, कहते हैं कि यह खुला जादू है।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 7

أَمۡ يَقُولُونَ ٱفۡتَرَىٰهُۖ قُلۡ إِنِ ٱفۡتَرَيۡتُهُۥ فَلَا تَمۡلِكُونَ لِي مِنَ ٱللَّهِ شَيۡـًٔاۖ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَا تُفِيضُونَ فِيهِۚ كَفَىٰ بِهِۦ شَهِيدَۢا بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡۖ وَهُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ

या वे कहते हैं कि उसने इसे[4] स्वयं गढ़ लिया है? आप कह दें : यदि मैंने इसे स्वयं गढ़ लिया है, तो तुम मेरे लिए अल्लाह के विरुद्ध किसी चीज़ का अधिकार नहीं रखते।[4] वह उन बातों को अधिक जानने वाला है जिनमें तुम व्यस्त होते हो। वह मेरे और तुम्हारे बीच गवाह के रूप में काफ़ी है, और वही बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।

तफ़्सीर:

4. अर्थात क़ुरआन को। 4. अर्थात अल्लाह की यातना से मेरी कोई रक्षा नहीं कर सकता। (देखिए : सूरतुल अह़्क़ाफ़, आयत : 44, 47)

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 8

قُلۡ مَا كُنتُ بِدۡعٗا مِّنَ ٱلرُّسُلِ وَمَآ أَدۡرِي مَا يُفۡعَلُ بِي وَلَا بِكُمۡۖ إِنۡ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَىٰٓ إِلَيَّ وَمَآ أَنَا۠ إِلَّا نَذِيرٞ مُّبِينٞ

आप कह दें कि मैं रसूलों में से कोई अनोखा (रसूल) नहीं हूँ और न मैं यह जानता हूँ कि मेरे साथ क्या किया जाएगा[6] और न (यह कि) तुम्हारे साथ क्या (किया जाएगा)। मैं तो केवल उसी का अनुसरण करता हूँ जो मेरी ओर वह़्य (प्रकाशना) की जाती है और मैं तो केवल खुला डराने वाला हूँ।

तफ़्सीर:

6. अर्थात संसार में। अन्यथा यह निश्चित है कि परलोक में ईमान वाले के लिए स्वर्ग तथा काफ़िर के लिए नरक है। किंतु किसी निश्चित व्यक्ति के परिणाम का ज्ञान किसी को नहीं।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 9

قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ وَكَفَرۡتُم بِهِۦ وَشَهِدَ شَاهِدٞ مِّنۢ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ عَلَىٰ مِثۡلِهِۦ فَـَٔامَنَ وَٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

आप कह दें : क्या तुमने देखा? यदि यह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से हुआ और तुमने उसका इनकार कर दिया, जबकि बनी इसराईल में से एक गवाही देने वाले ने उस जैसे की गवाही दी।[7] फिर वह ईमान ले आया और तुम घमंड करते रहे (तो तुम्हारा क्या परिणाम होगा?)। बेशक अल्लाह ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता।[8]

तफ़्सीर:

7. जैसे इसराईली विद्वान अब्दुल्लाह बिन सलाम ने इसी क़ुरआन जैसी बात के तौरात में होने की गवाही दी कि तौरात में मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के नबी होने का वर्णन है। और वह आप पर ईमान भी लाए। (सह़ीह़ बुख़ारी : 3813, सह़ीह़ मुस्लिम : 2484) 8. अर्थात अत्याचारियों को उनके अत्याचार के कारण कुपथ ही में रहने देता है, ज़बरदस्ती किसी को सीधी राह पर नहीं चलाता।

सूरह का नाम : Al-Ahqaf   सूरह नंबर : 46   आयत नंबर: 10

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