ह़ा, मीम।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 1
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ
इस पुस्तक[1] का अवतरण अल्लाह की ओर से है, जो सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
तफ़्सीर:
1. इस सूरत में भी तौह़ीद तथा परलोक के संबंध में मुश्रिकों के संदेहा को दूर किया गया है तथा उनकी दुराग्रह की निंदा की गई है।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 2
إِنَّ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ لَأٓيَٰتٖ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ
निःसंदेह आकाशों तथा धरती में ईमानवालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 3
وَفِي خَلۡقِكُمۡ وَمَا يَبُثُّ مِن دَآبَّةٍ ءَايَٰتٞ لِّقَوۡمٖ يُوقِنُونَ
तथा तुम्हारी सृष्टि में और उन जीवित चीज़ों में जो वह फैलाता[2] है, उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं जो विश्वास करते हैं।
तफ़्सीर:
2. तौह़ीद (एकेश्वरवाद) के प्रकरण में क़ुरआन ने प्रत्येक स्थान पर आकाश तथा धरती में अल्लाह के सामर्थ्य की फैली हुई निशानियों को प्रस्तुत किया है। और यह बताया है कि जैसे उसने वर्षा द्वारा मनुष्य के आर्थिक जीवन की व्यवस्था कर दी है, वैसे ही रसूलों तथा पुस्तकों द्वारा उसके आत्मिक जीवन की व्यवस्था कर दी है जिसपर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह विश्व की व्यवस्था स्वयं ऐसी खुली पुस्तक है जिसके पश्चात् ईमान लाने के लिए किसी और प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 4
وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مِن رِّزۡقٖ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَتَصۡرِيفِ ٱلرِّيَٰحِ ءَايَٰتٞ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ
तथा रात और दिन के फेर-बदल में और उस रोज़ी में जो अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर उसके द्वारा धरती को उसके मरने के पश्चात् जीवित कर दिया, तथा हवाओं के फेरने में, उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो बुद्धि से काम लेते हैं।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 5
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۖ فَبِأَيِّ حَدِيثِۭ بَعۡدَ ٱللَّهِ وَءَايَٰتِهِۦ يُؤۡمِنُونَ
ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम तुम्हें हक़ के साथ सुना रहे हैं। फिर अल्लाह तथा उसकी आयतों के बाद वे किस बात ईमान लाएँगे?
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 6
وَيۡلٞ لِّكُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٖ
विनाश है प्रत्येक बहुत झूठे, महा पापी के लिए।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 7
يَسۡمَعُ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ثُمَّ يُصِرُّ مُسۡتَكۡبِرٗا كَأَن لَّمۡ يَسۡمَعۡهَاۖ فَبَشِّرۡهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٖ
जो अल्लाह की आयतों को सुनता है, जबकि वे उसके सामने पढ़ी जाती हैं, फिर वह घमंड करते हुए अडिग रहता है, जैसे कि उसने उन्हें नहीं सुना, तो उसे दर्दनाक यातना की शुभ-सूचना दे दो।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 8
وَإِذَا عَلِمَ مِنۡ ءَايَٰتِنَا شَيۡـًٔا ٱتَّخَذَهَا هُزُوًاۚ أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ
और जब वह हमारी आयतों में से कोई चीज़ जान लेता है, तो उसकी हँसी उड़ाता है। यही लोग हैं, जिनके लिए अपमानकारी यातना है।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 9
مِّن وَرَآئِهِمۡ جَهَنَّمُۖ وَلَا يُغۡنِي عَنۡهُم مَّا كَسَبُواْ شَيۡـٔٗا وَلَا مَا ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡلِيَآءَۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٌ
उनके आगे जहन्नम है। और न वह उनके कुछ काम आएगा, जो उन्होंने कमाया और न वे जिन्हें उन्होंने अल्लाह के सिवा अपना संरक्षक बनाया है और उनके लिए बहुत बड़ी यातना है।
सूरह का नाम : Al-Jathiyah सूरह नंबर : 45 आयत नंबर: 10