कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ وَخَلَقَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَبَثَّ مِنۡهُمَا رِجَالٗا كَثِيرٗا وَنِسَآءٗۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِي تَسَآءَلُونَ بِهِۦ وَٱلۡأَرۡحَامَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَيۡكُمۡ رَقِيبٗا

ऐ लोगो! अपने[1] उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से पैदा किया तथा उसी से उसके जोड़े (हव्वा) को पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से नर-नारी फैला दिए। उस अल्लाह से डरो, जिसके माध्यम से तुम एक-दूसरे से माँगते हो, तथा रिश्ते-नाते को तोड़ने से डरो। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षक है।

तफ़्सीर:

1. यहाँ से सामाजिक व्यवस्था का नियम बताया गया है कि विश्व के सभी नर-नारी एक ही माता-पिता से पैदा किए गए हैं। इसलिए सब समान हैं। और सबके साथ अच्छा व्यवहार तथा भाई-चारे की भावना रखनी चाहिए। यह उस अल्लाह का आदेश है जो तुम्हारे मूल का उत्पत्तिकर्ता है। और जिसके नाम से तुम एक-दूसरे से अपना अधिकार माँगते हो कि अल्लाह के लिए मेरी सहायता करो। फिर इस साधारण संबंध के सिवा रिश्तेदारी का संबंध भी है, जिसे जोड़ने पर बहुत बल दिया गया है। एक ह़दीस में है कि रिश्तेदारी को तोड़ने वाला जन्नत में नहीं जाएगा। (सह़ीह़ बुख़ारी : 5984, मुस्लिम : 2555) इस आयत के पश्चात् कई आयतों में इन्हीं अल्लाह के निर्धारित किए मानव अधिकारों का वर्णन किया जा रहा है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 1

وَءَاتُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰٓ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَتَبَدَّلُواْ ٱلۡخَبِيثَ بِٱلطَّيِّبِۖ وَلَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَهُمۡ إِلَىٰٓ أَمۡوَٰلِكُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ حُوبٗا كَبِيرٗا

तथा अनाथों को उनका माल दे दो और पवित्र व हलाल चीज़ के बदले अपवित्र व हराम चीज़ न लो और उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर न खाओ। निःसंदेह यह बहुत बड़ा पाप है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 2

وَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا تُقۡسِطُواْ فِي ٱلۡيَتَٰمَىٰ فَٱنكِحُواْ مَا طَابَ لَكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ مَثۡنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا تَعۡدِلُواْ فَوَٰحِدَةً أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۚ ذَٰلِكَ أَدۡنَىٰٓ أَلَّا تَعُولُواْ

और यदि तुम्हें डर हो कि अनाथ लड़कियों (से विवाह) के मामले[2] में न्याय न कर सकोगे, तो अन्य औरतों में से जो तुम्हें पसंद हों, दो-दो, या तीन-तीन, या चार-चार से विवाह कर लो। लेकिन यदि तुम्हें डर हो कि (उनके बीच) न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही से विवाह करो अथवा जो दासी तुम्हारे स्वामित्व[3] में हो (उससे लाभ उठाओ)। यह इस बात के अधिक निकट है कि तुम अन्याय न करो।

तफ़्सीर:

2. अरब में इस्लाम से पूर्व अनाथ बालिका का संरक्षक यदि उसके खजूर का बाग़ हो, तो उसपर अधिकार रखने के लिए उससे विवाह कर लेता था। जबकि उसे उसमें कोई रूचि नहीं होती थी। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्या : 4573) 3. अर्थात युद्ध में बंदी बनाई गई दासी।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 3

وَءَاتُواْ ٱلنِّسَآءَ صَدُقَٰتِهِنَّ نِحۡلَةٗۚ فَإِن طِبۡنَ لَكُمۡ عَن شَيۡءٖ مِّنۡهُ نَفۡسٗا فَكُلُوهُ هَنِيٓـٔٗا مَّرِيٓـٔٗا

तथा स्त्रियों को उनके अनिवार्य मह्र खुशी से अदा कर दो। फिर यदि वे अपनी इच्छा से उसमें से कुछ तुम्हारे लिए छोड़ दें, तो उसे हलाल व पाक समझकर खाओ।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 4

وَلَا تُؤۡتُواْ ٱلسُّفَهَآءَ أَمۡوَٰلَكُمُ ٱلَّتِي جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمۡ قِيَٰمٗا وَٱرۡزُقُوهُمۡ فِيهَا وَٱكۡسُوهُمۡ وَقُولُواْ لَهُمۡ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا

तथा अपना धन, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन-यापन का साधन बनाया है, नासमझ लोगों को न दो।[4] और उन्हें उसमें से खिलाते और पहनाते रहो और उनसे भली बात कहो।

तफ़्सीर:

4. अर्थात धन, जीवन स्थापन का साधन है। इसलिए जब तक अनाथ चतुर तथा व्यस्क न हो जाएँ और अपने लाभ की रक्षा न कर सकें, उस समय तक उनका धन, उनके नियंत्रण में न दो।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 5

وَٱبۡتَلُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰ حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغُواْ ٱلنِّكَاحَ فَإِنۡ ءَانَسۡتُم مِّنۡهُمۡ رُشۡدٗا فَٱدۡفَعُوٓاْ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَأۡكُلُوهَآ إِسۡرَافٗا وَبِدَارًا أَن يَكۡبَرُواْۚ وَمَن كَانَ غَنِيّٗا فَلۡيَسۡتَعۡفِفۡۖ وَمَن كَانَ فَقِيرٗا فَلۡيَأۡكُلۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ فَإِذَا دَفَعۡتُمۡ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡ فَأَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبٗا

तथा अनाथों को जाँचते रहो, यहाँ तक कि जब वे वयस्कता की आयु को पहुँच जाएँ, तो यदि तुम देखो कि उनमें समझ-बूझ आ गई है, तो उनका माल उन्हें सौंप दो। और उसे फ़िज़ूल खर्ची से काम लेते हुए जल्दी-जल्दी इसलिए न खा जाओ कि वे बड़े हो जाएँगे (और अपने माल पर क़ब्ज़ा कर लेंगे)। और जो धनी हो, वह (अनाथ का माल खाने से) बचे तथा जो निर्धन हो, वह परंपरागत रूप से खा सकता है। तथा जब तुम उनका धन उनके हवाले करो, तो उनपर गवाह बना लो। और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 6

لِّلرِّجَالِ نَصِيبٞ مِّمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٞ مِّمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنۡهُ أَوۡ كَثُرَۚ نَصِيبٗا مَّفۡرُوضٗا

पुरुषों के लिए उस (धन) में से हिस्सा है, जो माता-पिता और क़रीबी रिश्तेदार छोड़ जाएँ, तथा स्त्रियों के लिए भी उसमें से हिस्सा है, जो माता-पिता और क़रीबी रिश्तेदार छोड़ जाएँ, वह थोड़ा हो या अधिक। ये हिस्से (अल्लाह की ओर से) निर्धारित[5] हैं।

तफ़्सीर:

5. इस्लाम से पहले साधारणतः यह विचार था कि पुत्रियों का धन और संपत्ति की विरासत (उत्तराधिकार) में कोई भाग नहीं। इसमें इस कुरीति का निवारण किया गया और नियम बना दिय गया कि अधिकार में पुत्र और पुत्री दोनों समान हैं। यह इस्लाम ही की विशेषता है जो संसार के किसी धर्म अथवा विधान में नहीं पाई जाती। इस्लाम ही ने सर्वप्रथम नारी के साथ न्याय किया और उसे पुरुषों के बराबर अधिकार दिया है।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 7

وَإِذَا حَضَرَ ٱلۡقِسۡمَةَ أُوْلُواْ ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينُ فَٱرۡزُقُوهُم مِّنۡهُ وَقُولُواْ لَهُمۡ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا

और जब (विरासत के) बंटवारे के समय (गैर-वारिस) रिश्तेदार[6], अनाथ और निर्धन उपस्थित हों, तो उसमें से थोड़ा बहुत उन्हें भी दे दो और उनसे भली बात कहो।

तफ़्सीर:

6. इन से अभिप्राय वे समीपवर्ती हैं जिनका मीरास में निर्धारित भाग न हो, जैसे अनाथ पौत्र तथा पौत्री आदि। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4576)

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 8

وَلۡيَخۡشَ ٱلَّذِينَ لَوۡ تَرَكُواْ مِنۡ خَلۡفِهِمۡ ذُرِّيَّةٗ ضِعَٰفًا خَافُواْ عَلَيۡهِمۡ فَلۡيَتَّقُواْ ٱللَّهَ وَلۡيَقُولُواْ قَوۡلٗا سَدِيدًا

और उन लोगों को डरना चाहिए कि यदि वे अपने पीछे कमज़ोर संतान छोड़ जाते, तो उन्हें उनके बारे में कैसा भय होता। अतः उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और भली बात कहें।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 9

إِنَّ ٱلَّذِينَ يَأۡكُلُونَ أَمۡوَٰلَ ٱلۡيَتَٰمَىٰ ظُلۡمًا إِنَّمَا يَأۡكُلُونَ فِي بُطُونِهِمۡ نَارٗاۖ وَسَيَصۡلَوۡنَ سَعِيرٗا

जो लोग अनाथों का धन अन्यायपूर्ण तरीक़े से खाते हैं, वे अपने पेट में आग भरते हैं और वे शीघ्र ही जहन्नम की आग में प्रवेश करेंगे।

सूरह का नाम : An-Nisa   सूरह नंबर : 4   आयत नंबर: 10

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