कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

طسٓمٓ

ता, सीन, मीम।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 1

تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ

ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 2

لَعَلَّكَ بَٰخِعٞ نَّفۡسَكَ أَلَّا يَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ

शायद (ऐ रसूल!) आप अपने आपको हलाक करने वाले हैं, इसलिए कि वे ईमान नहीं लाते।[1]

तफ़्सीर:

1. अर्थात उनके ईमान न लाने के शोक में।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 3

إِن نَّشَأۡ نُنَزِّلۡ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ءَايَةٗ فَظَلَّتۡ أَعۡنَٰقُهُمۡ لَهَا خَٰضِعِينَ

यदि हम चाहें, तो उनपर आकाश से कोई निशानी उतार दें, फिर उसके सामने उनकी गर्दनें झुकी रह जाएँ।[2]

तफ़्सीर:

2. परंतु ऐसा नहीं किया, क्योंकि दबाव का ईमान स्वीकार्य तथा मान्य नहीं होता।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 4

وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن ذِكۡرٖ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ مُحۡدَثٍ إِلَّا كَانُواْ عَنۡهُ مُعۡرِضِينَ

और जब भी 'रह़मान' (अति दयावान्) की ओर से उनके पास कोई नई नसीहत आती है, तो वे उससे मुँह फेरने वाले होते हैं।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 5

فَقَدۡ كَذَّبُواْ فَسَيَأۡتِيهِمۡ أَنۢبَـٰٓؤُاْ مَا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ

अतः निःसंदेह उन्होंने झुठला दिया, तो शीघ्र ही उनके पास उस चीज़ की खबरें आ जाएँगी, जिसका वे उपहास उड़ाया करते थे।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 6

أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ كَمۡ أَنۢبَتۡنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوۡجٖ كَرِيمٍ

और क्या उन्होंने धरती की ओर नहीं देखा कि हमने उसमें हर उत्तम प्रकार के कितने पौधे उगाए हैं?

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 7

إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ

निःसंदे इसमें निश्चय एक बड़ी निशानी[3] है। (परंतु) उनमें से अधिकतर ईमान लाने वाले नहीं थे।

तफ़्सीर:

3. अर्थात अल्लाह के सामर्थ्य की।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 8

وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

तथा निःसंदेह आपका पालनहार, निश्चय वही सबपर प्रभुत्वशाली, अत्यंत दयावान् है।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 9

وَإِذۡ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱئۡتِ ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

और जब आपके पालनहार ने मूसा को पुकारा कि उन ज़ालिम लोगों[4] के पास जाओ।

तफ़्सीर:

4. यह उस समय की बात है जब मूसा (अलैहिस्सलाम) दस वर्ष मदयन में रहकर मिस्र वापस आ रहे थे।

सूरह का नाम : Ash-Shuara   सूरह नंबर : 26   आयत नंबर: 10

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