कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

إِنَّا فَتَحۡنَا لَكَ فَتۡحٗا مُّبِينٗا

निःसंदेह हमने आपको एक स्पष्ट विजय[1] प्रदान की।

तफ़्सीर:

1. ह़दीस में है कि इससे अभिप्राय ह़ुदैबिया की संधि है। (बुख़ारी : 4834)

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 1

لِّيَغۡفِرَ لَكَ ٱللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنۢبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَيۡكَ وَيَهۡدِيَكَ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا

ताकि अल्लाह आपके अगले और पिछले गुनाहों को क्षमा[2] कर दे तथा आपपर अपनी अनुकंपा पूर्ण कर दे और आपको सीधे मार्ग पर चलाए।

तफ़्सीर:

2. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रात्रि में इतनी नमाज़ पढ़ा करते थे कि आपके पाँव सूज जाते थे। तो आपसे कहा गया कि आप ऐसा क्यों करते हैं, हालाँकि अल्लाह ने तो आपके पहले तथा पिछले पाप क्षमा कर दिए हैं? तो आपने फरमाया : तो क्या मैं एक कृतज्ञ बंदा बनना पसंद न करूँ? (सह़ीह़ बुख़ारी : 4837)

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 2

وَيَنصُرَكَ ٱللَّهُ نَصۡرًا عَزِيزًا

तथा अल्लाह आपकी भरपूर सहायता करे।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 3

هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ فِي قُلُوبِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ لِيَزۡدَادُوٓاْ إِيمَٰنٗا مَّعَ إِيمَٰنِهِمۡۗ وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا

वही है, जिसने ईमान वालों के दिलों में शांति उतारी, ताकि वे अपने ईमान के साथ ईमान में और बढ़ जाएँ। और आकाशों तथा धरती की सेनाएँ अल्लाह ही की हैं। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 4

لِّيُدۡخِلَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَيُكَفِّرَ عَنۡهُمۡ سَيِّـَٔاتِهِمۡۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عِندَ ٱللَّهِ فَوۡزًا عَظِيمٗا

ताकि वह ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों को ऐसे बागों में दाखिल करे, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, वे उनमें सदैव रहेंगे। तथा उनसे उनकी बुराइयाँ दूर कर दे और यह अल्लाह के निकट हमेशा बड़ी कामयाबी है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 5

وَيُعَذِّبَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلۡمُشۡرِكِينَ وَٱلۡمُشۡرِكَٰتِ ٱلظَّآنِّينَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوۡءِۚ عَلَيۡهِمۡ دَآئِرَةُ ٱلسَّوۡءِۖ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡ وَلَعَنَهُمۡ وَأَعَدَّ لَهُمۡ جَهَنَّمَۖ وَسَآءَتۡ مَصِيرٗا

और (ताकि) उन मुनाफ़िक़ पुरुषों एवं मुनाफ़िक़ स्त्रियों तथा मुश्रिक पुरुषों एवं मुश्रिक स्त्रियों को यातना दे, जो अल्लाह के संबंध में बुरा गुमान रखते हैं। बुराई का फेरा उन्हीं पर है। उनपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और उसने उनपर लानत की तथा उनके लिए जहन्नम तैयार कर रखी है और वह बहुत बुरा ठिकाना है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 6

وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا

तथा अल्लाह ही के लिए आकाशों और धरती की सेनाएँ हैं और अल्लाह हमेशा से सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।[3]

तफ़्सीर:

3. इसलिए वह जिसे चाहे और जब चाहे, विनष्ट कर सकता है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 7

إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ شَٰهِدٗا وَمُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا

निःसंदेह हमने आपको गवाही देने वाला और खुशख़बरी देने वाला और सावधान करने वाला बनाकर भेजा है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 8

لِّتُؤۡمِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُۚ وَتُسَبِّحُوهُ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلًا

ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी मदद करो और उसका सम्मान करो और दिन के आरंभ एवं अंत में उसकी पवित्रता का गान करो।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 9

إِنَّ ٱلَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ ٱللَّهَ يَدُ ٱللَّهِ فَوۡقَ أَيۡدِيهِمۡۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَوۡفَىٰ بِمَا عَٰهَدَ عَلَيۡهُ ٱللَّهَ فَسَيُؤۡتِيهِ أَجۡرًا عَظِيمٗا

निःसंदेह वे लोग, जो आपसे बैअत करते हैं, वे असल में अल्लाह से बैअत[4] करते हैं, अल्लाह का हाथ उनके हाथों के ऊपर है। फिर जिस किसी ने वचन तोड़ा, तो वह अपने आप ही पर वचन तोड़ता है। तथा जिसने, अल्लाह से जो वादा किया था, उसे पूरा किया, तो वह जल्द ही उसे बहुत बड़ा प्रतिफल देगा।

तफ़्सीर:

4. बै'अत का अर्थ है हाथ पर हाथ मार कर वचन देना। यह बैअत नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने युद्ध के लिए ह़ुदैबिया में अपने चौदह सौ साथियों से एक वृक्ष के नीचे ली थी। जो इस्लामी इतिहास में "बैअत रिज़वान" के नाम से प्रसिद्ध है। रही वह बै'अत जो पीर अपने मुरीदों से लेते हैं, तो उसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।

सूरह का नाम : Al-Fath   सूरह नंबर : 48   आयत नंबर: 10

नूजलेटर के लिए साइन अप करें