कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

قُلۡ أُوحِيَ إِلَيَّ أَنَّهُ ٱسۡتَمَعَ نَفَرٞ مِّنَ ٱلۡجِنِّ فَقَالُوٓاْ إِنَّا سَمِعۡنَا قُرۡءَانًا عَجَبٗا

(ऐ नबी!) कह दें : मेरी ओर वह़्य[1] की गई है कि जिन्नों के एक समूह ने (मेरे क़ुरआन पढ़ने को) ध्यान से सुना। फिर उन्होंने कहा : निःसंदेह हमने एक अद्भुत क़ुरआन सुना है।

तफ़्सीर:

1. सूरतुल-अह़्क़ाफ़, आयत : 29 में इसका वर्णन किया गया है। इस सूरत में यह बताया गया है कि जब जिन्नों ने क़ुरआन सुना, तो आपने न जिन्नों को देखा और न आपको उसका ज्ञान हुआ। बल्कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वह़्य (प्रकाशना) द्वारा इससे सूचित किया गया।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 1

يَهۡدِيٓ إِلَى ٱلرُّشۡدِ فَـَٔامَنَّا بِهِۦۖ وَلَن نُّشۡرِكَ بِرَبِّنَآ أَحَدٗا

जो सीधी राह दिखाता है, तो हम उसपर ईमान ले आए और (अब) हम अपने पालनहार के साथ किसी को कभी साझी नहीं बनाएँगे।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 2

وَأَنَّهُۥ تَعَٰلَىٰ جَدُّ رَبِّنَا مَا ٱتَّخَذَ صَٰحِبَةٗ وَلَا وَلَدٗا

तथा यह कि हमारे पालनहार की महिमा बहुत ऊँची है। उसने न (अपनी) कोई संगिनी (पत्नी) बनाई है और न कोई संतान।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 3

وَأَنَّهُۥ كَانَ يَقُولُ سَفِيهُنَا عَلَى ٱللَّهِ شَطَطٗا

तथा यह कि हमारा मूर्ख अल्लाह के बारे में सत्य से हटी हुई बात कहा करता था।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 4

وَأَنَّا ظَنَنَّآ أَن لَّن تَقُولَ ٱلۡإِنسُ وَٱلۡجِنُّ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗا

और यह कि हमने समझ रखा था कि मनुष्य और जिन्न अल्लाह पर हरगिज़ कोई झूठी बात नहीं बोलेंगे।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 5

وَأَنَّهُۥ كَانَ رِجَالٞ مِّنَ ٱلۡإِنسِ يَعُوذُونَ بِرِجَالٖ مِّنَ ٱلۡجِنِّ فَزَادُوهُمۡ رَهَقٗا

और वास्तविकता यह है कि मनुष्यों में से कुछ लोग, जिन्नों में से कुछ लोगों की शरण लिया करते थे। तो उन्होंने उन (जिन्नों) को सरकशी में बढ़ा दिया।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 6

وَأَنَّهُمۡ ظَنُّواْ كَمَا ظَنَنتُمۡ أَن لَّن يَبۡعَثَ ٱللَّهُ أَحَدٗا

और यह कि उन (इनसानों) ने गुमान किया था, जैसे कि तुमने गुमान किया था कि अल्लाह किसी को कभी नहीं उठाएगा।

तफ़्सीर:

(1) توحید وعبادت الٰہی کے ساتھ ہی والدین کے ساتھ حسن سلوک کی تاکید سےاس نصیحت کی اہمیت واضح ہے۔ (2) اس کا مطلب ہے کہ رحم مادر میں بچہ جس حساب سے بڑھتا جاتا ہے، ماں پر بوجھ بڑھتا جاتا ہے جس سے عورت کمزور سے کمزور تر ہوتی چلی جاتی ہے۔ ماں کی اس مشقت کے ذکر سے اس طرف بھی اشارہ نکلتا ہے کہ والدین کے ساتھ احسان کرتے وقت ماں کو مقدم رکھا جائے، جیسا کہ حدیث میں بھی ہے۔ (3) اس سے معلوم ہوا کہ مدت رضاعت دو سال ہے، اس سے زیادہ نہیں۔

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 7

وَأَنَّا لَمَسۡنَا ٱلسَّمَآءَ فَوَجَدۡنَٰهَا مُلِئَتۡ حَرَسٗا شَدِيدٗا وَشُهُبٗا

तथा यह कि हमने आकाश को टटोला, तो उसे सख़्त पहरेदारों और उल्काओं से भरा हुआ पाया।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 8

وَأَنَّا كُنَّا نَقۡعُدُ مِنۡهَا مَقَٰعِدَ لِلسَّمۡعِۖ فَمَن يَسۡتَمِعِ ٱلۡأٓنَ يَجِدۡ لَهُۥ شِهَابٗا رَّصَدٗا

और यह कि हम उसके कई स्थानों में सुनने के लिए बैठा करते थे। परन्तु, अब जो सुनने का प्रयास करता है, वह अपने लिए एक उल्का घात में लगा हुआ पाता है।

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 9

وَأَنَّا لَا نَدۡرِيٓ أَشَرٌّ أُرِيدَ بِمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ أَرَادَ بِهِمۡ رَبُّهُمۡ رَشَدٗا

और यह कि हम नहीं जानते कि क्या धरती वालों के साथ किसी बुराई का इरादा किया गया है या उनके पालनहार ने उनके साथ किसी भलाई का इरादा किया है?

तफ़्सीर:

(1) إِقَامَةُ صَلاةٍ، أَمْرٌ بِالْمَعْرُوفِ، نَهْيٌ عَنْ الْمُنْكَرِ اور مصائب پر صبر کا اس لئے ذکر کیا کہ یہ تینوں اہم ترین عبادات اور امور خیر کی بنیاد ہیں۔ (2) یعنی مذکورہ باتیں ان کاموں میں سے ہیں جن کی اللہ تعالیٰ نے تاکید فرمائی ہے اور بندوں پر انہیں فرض قرار دیا ہے۔ یا یہ ترغیب ہے عزم وہمت پیدا کرنے کی کیونکہ عزم وہمت کے بغیر طاعات مذکورہ پر عمل ممکن نہیں۔ بعض مفسرین کے نزدیک ذلک کا مرجع صبر ہے۔ اس سے پہلے امر بالمعروف اور نہی عن المنکر کی وصیت ہے اور اس راہ میں شدائد ومصائب اور طعن وملامت ناگزیر ہے، اس لئے اس کے فوراً بعد صبر کی تلقین کرکے واضح کر دیا کہ صبر کا دامن تھامے رکھنا کہ یہ عزم وہمت کے کاموں میں سے ہےاور اہل عزم وہمت کا ایک بڑا ہتھیار ہے۔ اس کے بغیر فریضۂ تبلیغ کی ادائیگی ممکن نہیں۔

सूरह का नाम : Al-Jinn   सूरह नंबर : 72   आयत नंबर: 10

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