कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

حمٓ

ह़ा, मीम।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 1

وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ

क़सम है स्पष्ट करने वाली पुस्तक की।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 2

إِنَّا جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَٰنًا عَرَبِيّٗا لَّعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ

निःसंदेह हमने इसे अरबी क़ुरआन बनाया, ताकि तुम समझो।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 3

وَإِنَّهُۥ فِيٓ أُمِّ ٱلۡكِتَٰبِ لَدَيۡنَا لَعَلِيٌّ حَكِيمٌ

तथा निःसंदेह वह हमारे पास मूल पुस्तक[1] में निश्चय बड़ा उच्च तथा पूर्ण हिकमत वाला है।

तफ़्सीर:

1. मूल पुस्तक से अभिप्राय 'लौह़-मह़फ़ूज़' (सुरक्षित पुस्तक) है। जिससे सभी आकाशीय पुस्तकें अलग करके अवतरित की गई हैं। सूरतुल-वाक़िआ में इसी को "किताब-मक्नून" कहा गया है। सूरतुल-बुरूज में इसे "लौह़-मह़फ़ूज़" कहा गया है। सूरतुश्-शुअरा में कहा गया है कि यह अगले लोगों की पुस्तकों में है। सूरतुल-आला में कहा गया है कि यह विषय पहली पुस्तकों में भी अंकित है। सारांश यह है कि क़ुरआन के इनकार करने का कोई कारण नहीं। तथा क़ुरआन का इनकार सभी पहली पुस्तकों का इनकार करने के बराबर है।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 4

أَفَنَضۡرِبُ عَنكُمُ ٱلذِّكۡرَ صَفۡحًا أَن كُنتُمۡ قَوۡمٗا مُّسۡرِفِينَ

तो क्या हम तुमसे इस नसीहत को फेर दें, उपेक्षा करते हुए, इस कारण कि तुम हद से बढ़ने वाले लोग हो?

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 5

وَكَمۡ أَرۡسَلۡنَا مِن نَّبِيّٖ فِي ٱلۡأَوَّلِينَ

और कितने ही नबी हमने पहले लोगों में भेजे।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 6

وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن نَّبِيٍّ إِلَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ

और उनके पास कोई नबी नहीं आता था, परंतु वे उसका उपहास करते थे।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 7

فَأَهۡلَكۡنَآ أَشَدَّ مِنۡهُم بَطۡشٗا وَمَضَىٰ مَثَلُ ٱلۡأَوَّلِينَ

तो हमने इनसे[2] कहीं अधिक बलशाली लोगों को विनष्ट कर दिया तथा अगले लोगों का उदाहरण गुज़र चुका।

तफ़्सीर:

2. अर्थात मक्का वासियों से।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 8

وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ خَلَقَهُنَّ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡعَلِيمُ

और निःसंदेह यदि आप उनसे पूछें कि आकाशों तथा धरती को किसने पैदा किया? तो निश्चय अवश्य कहेंगे कि उन्हें सब पर प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले ने पैदा किया है।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 9

ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ مَهۡدٗا وَجَعَلَ لَكُمۡ فِيهَا سُبُلٗا لَّعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ

वह जिसने तुमहारे लिए धरती को समतल बनाया और उसमें तुम्हारे लिए मार्ग बनाए, ताकि तुम राह पा सको।[3]

तफ़्सीर:

3. एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए।

सूरह का नाम : Az-Zukhruf   सूरह नंबर : 43   आयत नंबर: 10

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