कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

الٓرۚ تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ وَقُرۡءَانٖ مُّبِينٖ

अलिफ़, लाम, रा। ये किताब और स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 1

رُّبَمَا يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡ كَانُواْ مُسۡلِمِينَ

(एक समय आएगा कि) काफ़िर चाहेंगे कि काश वे (दुनिया में) मुसलमान होते![1]

तफ़्सीर:

1. ऐसा उस समय होगा जब फ़रिश्ते उनकी आत्मा निकालने आएँगे, और उनको उनका नरक का स्थान दिखा देंगे। और क़ियामत के दिन तो ऐसी दुर्दशा होगी कि धूल हो जाने की कामना करेंगे। (देखिए : सूरतुन-नबा, आयत : 40)

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 2

ذَرۡهُمۡ يَأۡكُلُواْ وَيَتَمَتَّعُواْ وَيُلۡهِهِمُ ٱلۡأَمَلُۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ

(ऐ नबी!) आप उन्हें छोड़ दें। वे खाएँ और लाभ उठाएँ, तथा (लंबी) आशा उन्हें ग़ाफ़िल रखे, फिर शीघ्र ही जान लेंगे।[2]

तफ़्सीर:

2. अपने दुष्परिणाम को।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 3

وَمَآ أَهۡلَكۡنَا مِن قَرۡيَةٍ إِلَّا وَلَهَا كِتَابٞ مَّعۡلُومٞ

और हमने जिस बस्ती को भी नष्ट किया, उसका एक निर्धारित समय था।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 4

مَّا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ

कोई जाति अपने नियत समय से न आगे बढ़ती है और न वे पीछे रहते हैं।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 5

وَقَالُواْ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِي نُزِّلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ إِنَّكَ لَمَجۡنُونٞ

तथा उन (काफ़िरों) ने कहा : ऐ वह व्यक्ति जिसपर स्मरण (क़ुरआन) अवतरित किया गया है, निःसंदेह तू तो पागल है।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 6

لَّوۡ مَا تَأۡتِينَا بِٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ

यदि तू सच्चों में से है, तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आता?

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 7

مَا نُنَزِّلُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَمَا كَانُوٓاْ إِذٗا مُّنظَرِينَ

हम फ़रिश्तों को सत्य के साथ ही उतारते हैं और उस समय उन्हें कोई मोहलत नहीं दी जाती।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 8

إِنَّا نَحۡنُ نَزَّلۡنَا ٱلذِّكۡرَ وَإِنَّا لَهُۥ لَحَٰفِظُونَ

निःसंदेह हमने ही यह ज़िक्र (क़ुरआन) उतारी है और निःसंदेह हम ही इसकी अवश्य रक्षा करने वाले[3] हैं।

तफ़्सीर:

3. यह ऐतिहासिक सत्य है। इस विश्व के धर्म ग्रंथों में क़ुरआन ही एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिसमें उसके अवतरित होने के समय से अब तक एक अक्षर तो क्या एक मात्रा का भी परिवर्तन नहीं हुआ। और न हो सकता है। यह विशेषता इस विश्व के किसी भी धर्म ग्रंथ को प्राप्त नहीं है। तौरात हो अथवा इंजील या इस विश्व के अन्य धर्म शास्त्र हों, सब में इतने परिवर्तन किए गए हैं कि सत्य मूल धर्म की पहचान असंभव हो गई है। इसी प्रकार इस (क़ुरआन) की व्याख्या जिसे ह़दीस कहा जाता है, वह भी सुरक्षित है। और उसका पालन किए बिना किसी का जीवन इस्लामी नहीं हो सकता। क्योंकि क़ुरआन का आदेश है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हें जो दें उसको ले लो। और जिससे रोक दें उससे रुक जाओ। (देखिए सूरतुल-ह़श्र, आयत : 7) क़ुरआन कहता है कि ऐ नबी! अल्लाह ने आप पर क़ुरआन इसलिए उतारा है कि आप लोगों के लिए उसकी व्याख्या कर दें। क़ुरआन कहता है कि ऐ नबी! (सूरतुन-नह़्ल, आयत : 44) जिस व्याख्या से नमाज़, रोज़ा आदि इस्लामी अनिवार्य कर्तव्यों की विधि का ज्ञान होता है। इसीलिए उसको सुरक्षित किया गया है। और हम ह़दीस के एक-एक रावी के जन्म और मौत का समय और उसकी पूरी दशा को जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि वह विश्वसनीय है या नहीं? इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि इस संसार में इस्लाम के सिवा कोई धर्म ऐसा नहीं है, जिसकी मूल पुस्तकें तथा उसके नबी की सारी बातें सुरक्षित हों।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 9

وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ فِي شِيَعِ ٱلۡأَوَّلِينَ

और निःसंदेह हमने आपसे पहले विगत समुदायों के समूहों में रसूल भेजे हैं।

सूरह का नाम : Al-Hijr   सूरह नंबर : 15   आयत नंबर: 10

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