कुरान उद्धरण : 
بِسۡمِ ٱللهِ ٱلرَّحۡمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

الٓمٓ

अलिफ़, लाम, मीम।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 1

ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَيُّ ٱلۡقَيُّومُ

अल्लाह (वह है कि) उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। (वह) जीवित है, हर चीज़ को सँभालने (क़ायम रखने) वाला है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 2

نَزَّلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَأَنزَلَ ٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ

उसने आप पर (यह) पुस्तक सत्य के साथ उतारी, जो उसकी पुष्टि करने वाली है जो इससे पूर्व है, और उसने तौरात तथा इंजील उतारी।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 3

مِن قَبۡلُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ ٱلۡفُرۡقَانَۗ إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٞ ذُو ٱنتِقَامٍ

इससे पहले, लोगों के मार्गदर्शन के लिए। और उसने फ़ुरक़ान (सत्य और असत्य में अंतर करने वाला मानदंड) उतारा।[1] निःसंदेह जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया, उनके लिए बहुत कड़ी यातना है। और अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।

तफ़्सीर:

1. अर्थात तौरात और इंजील अपने समय में लोगों के लिए मार्गदर्शन थे, परंतु फ़ुरक़ान (क़ुरआन) उतरने के पश्चात् अब वह मार्गदर्शन केवल क़ुरआन पाक में है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 4

إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَخۡفَىٰ عَلَيۡهِ شَيۡءٞ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِي ٱلسَّمَآءِ

निःसंदेह अल्लाह वह है जिससे न धरती में कोई चीज़ छिपी रहती है और न आकाश में।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 5

هُوَ ٱلَّذِي يُصَوِّرُكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡحَامِ كَيۡفَ يَشَآءُۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ

वही है जो गर्भाशयों में तुम्हारे रूप बनाता है, जिस तरह चाहता है। उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, (वह) सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 6

هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ مِنۡهُ ءَايَٰتٞ مُّحۡكَمَٰتٌ هُنَّ أُمُّ ٱلۡكِتَٰبِ وَأُخَرُ مُتَشَٰبِهَٰتٞۖ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمۡ زَيۡغٞ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَٰبَهَ مِنۡهُ ٱبۡتِغَآءَ ٱلۡفِتۡنَةِ وَٱبۡتِغَآءَ تَأۡوِيلِهِۦۖ وَمَا يَعۡلَمُ تَأۡوِيلَهُۥٓ إِلَّا ٱللَّهُۗ وَٱلرَّـٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ يَقُولُونَ ءَامَنَّا بِهِۦ كُلّٞ مِّنۡ عِندِ رَبِّنَاۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ

(ऐ नबी!) वही है जिसने आप पर[2] (यह) पुस्तक उतारी, जिसमें से कुछ आयतें मोह़कम[3] (स्पष्ट तर्क वाली) हैं, वही पुस्तक का मूल हैं, तथा कुछ दूसरी (आयतें) मुतशाबेह[4] (छिपे हुए और पोशीदा अर्थ वाली) हैं। फिर जिनके दिलों में टेढ़ है, तो वे फ़ित्ने की तलाश में तथा उसके असल आशय की तलाश के उद्देश्य से, सदृश अर्थों वाली आयतों का अनुसरण करते हैं। हालाँकि उनका वास्तविक अर्थ अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। तथा जो लोग ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं हम उसपर ईमान लाए, सब हमारे पालनहार की और से है। और शिक्षा वही लोग ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।

तफ़्सीर:

2. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने मानव का रूप आकार बनाने और उसकी आर्थिक आवश्यकता की व्यवस्था करने के समान, उसकी आत्मिक आवश्यकता के लिए क़ुरआन उतारा है, जो अल्लाह की प्रकाशना तथा मार्गदर्शन और फ़ुरक़ान है। जिसके द्वारा सत्यासत्य में अंतर करके सत्य को स्वीकार करे। 3. मोह़कम (सुदृढ़) से अभिप्राय वे आयतें हैं, जिनके अर्थ स्थिर, खुले हुए हैं। जैसे एकेश्वरवाद, रिसालत तथा आदेशों और निषेधों एवं ह़लाल (वैध) और ह़राम (अवैध) से संबंधित आयतें, यही पुस्तक का मूल आधार हैं। 4. मुतशाबेह (संदिग्ध) से अभिप्राय वह आयतें हैं, जिनमें उन तथ्यों की ओर संकेत किया गया है, जो हमारी ज्ञानेंद्रियों में नहीं आ सकते, जैसे मौत के पश्चात् जीवन, तथा परलोक की बातें। इन आयतों के विषय में अल्लाह ने हमें जो जानकारी दी है, हम उनपर विश्वास करते हैं, क्योंकि इनका विस्तार विवरण हमारी बुद्धि से बाहर है, परंतु जिनके दिलों में खोट है वह इनकी वास्तविकता जानने के पीछे पड़ जाते हैं, जो उनकी शक्ति से बाहर है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 7

رَبَّنَا لَا تُزِغۡ قُلُوبَنَا بَعۡدَ إِذۡ هَدَيۡتَنَا وَهَبۡ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحۡمَةًۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡوَهَّابُ

(तथा वे कहते हैं :) ऐ हमारे पालनहार! हमें हिदायत देने के बाद हमारे दिलों को टेढ़ा न कर, और हमें अपनी ओर से दया प्रदान कर। निःसंदेह तू ही बहुत बड़ा दाता है।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 8

رَبَّنَآ إِنَّكَ جَامِعُ ٱلنَّاسِ لِيَوۡمٖ لَّا رَيۡبَ فِيهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ

ऐ हमारे पालनहार! निःसंदेह तू सब लोगों को उस दिन के लिए इकट्ठा करने वाला है, जिस (के आने) में कोई शक नहीं। निःसंदेह अल्लाह वादे के विरुद्ध नहीं करता।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 9

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمۡ وَقُودُ ٱلنَّارِ

निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके धन तथा उनकी संतान उन्हें अल्लाह (की यातना) से (बचाने में) कदापि कुछ काम नहीं आएँगे, तथा वही आग का ईंधन हैं।

सूरह का नाम : Al Imran   सूरह नंबर : 3   आयत नंबर: 10

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