लिप्यंतरण:( Innas Safaa wal-Marwata min sha'aaa'iril laahi faman hajjal Baita awi'tamara falaa junaaha 'alaihi ai yattawwafa bihimaa; wa man tatawwa'a khairan fa innal laaha Shaakirun'Aleem )
158. "बेशक सफ़ा और मरवा अल्लाह की निशानियों में से हैं [331]। तो जो कोई भी इस पाक घर का हज्ज या उमरा करे, तो उस पर कोई गुनाह नहीं कि वह इन दोनों के दरमियान सई करे [332][333]। और जो कोई खुशी से कोई नेकी करे, तो बेशक अल्लाह क़द्र करने वाला, सब कुछ जानने वाला है [334]।"
👉 सबक़: जो काम ख़ालिस अल्लाह के लिए किया जाए, वो हमेशा के लिए बरकत और इबादत बन जाता है।
👉 इस आयत ने साफ़ किया कि इसमें कोई गुनाह नहीं, बल्कि यह एक मशरू (शरई / वैध) और मुक़द्दस अमल है।
👉 इस्लाम ने यह बताने की ज़रूरत महसूस की क्योंकि मुसलमानों में कुछ को शुबहा था कि ये अमल कहीं शिर्क जैसा ना हो।
👉 सबक़: अल्लाह हमारे हर अच्छे अमल से बाख़बर है और वो किसी भी नेक काम को ज़ाया नहीं करता।
The tafsir of Surah Baqarah verse 157 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Baqarah ayat 155 which provides the complete commentary from verse 155 through 157.
सूरा आयत 158 तफ़सीर (टिप्पणी)