लिप्यंतरण:( 'A lahum arjuluny yamshoona bihaa 'am lahum 'aidiny yabtishoona bihaaa 'am lahum a'yunuy yubsiroona bihaaa 'am lahum aazaanuny yasma'oona bihaa; qulid'oo shurakaaa'akum thumma keedooni falaa tunziroon )
क्या इनके पाँव हैं जिनसे ये चल सकें? या इनके हाथ हैं जिनसे ये पकड़ सकें? या इनकी आँखें हैं जिनसे ये देख सकें? या इनके कान हैं जिनसे ये सुन सकें? कह दो: अपने साझीदारों को बुला लो और मुझ पर चालें चल लो और मुझे कोई मोहलत न दो [450]।
इस आयत में सवालों के ज़रिये बताया गया है कि ये मूर्तियाँ और बुत न तो चल सकते हैं, न पकड़ सकते हैं, न देख सकते हैं और न सुन सकते हैं। जबकि इंसान और जानवरों में ये क्षमताएँ मौजूद हैं। इससे साफ़ साबित होता है कि पत्थरों और पेड़ों की बनी हुई मूर्तियाँ इबादत के बिल्कुल लायक नहीं हैं।
इसके बाद नबी ﷺ की ओर से खुली चुनौती दी गई कि तुम अपने सारे साझीदार बुला लो और मुझ पर हमला कर लो, मुझे ज़रा भी मोहलत मत दो। यह नबियों की वह बहादुरी है जो अल्लाह उन्हें देता है, जिससे वे पूरी क़ौम और ग़लत निज़ाम के सामने भी अकेले डटे रहते हैं।
The tafsir of Surah Al-A’raf verse 195 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah A’raf ayat 191 which provides the complete commentary from verse 191 through 198.

सूरा आयत 195 तफ़सीर (टिप्पणी)