लिप्यंतरण:( Wa law shaaa'al laahu maaa ashrakoo; wa maa ja'alnaaka 'alaihim hafeezanw wa maaa anta 'alaihim biwakeel )
और अगर अल्लाह चाहता तो वे शिर्क न करते [232]। और हमने तुम्हें उन पर निगहबान नहीं बनाया, और न ही तुम उनके वकील हो [233]।
यह सिखाता है कि काफ़िरों का कुफ़्र और शिर्क अल्लाह की मर्ज़ी (इरादा) से होता है, उसकी पसंद (चाहत) से नहीं। मर्ज़ी का मतलब है किसी चीज़ का वक़ूअ होने देना, जबकि चाहत का मतलब है भलाई का हुक्म देना। ये दोनों अलग-अलग हैं।
नबी ﷺ उनके कुफ़्र के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं। आपको न तो उनका निगरान बनाया गया है और न ही उनका वकील। आपका काम सिर्फ़ पैग़ाम पहुंचाना है, मजबूर करना नहीं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 107 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 106 which provides the complete commentary from verse 106 through 107.

सूरा आयत 107 तफ़सीर (टिप्पणी)