लिप्यंतरण:( Qul innee 'alaa baiyinatim mir Rabbee wa kazzabtum bih; maa 'indee maa tasta'jiloona bih; inil hukmu illaa lillaahi yaqussul haqqa wa Huwa khairul faasileen )
मैं कह देता हूँ: मेरे पास मेरे रब की तरफ़ से रोशन दलील है, और तुम उसे झुटलाते हो। जिस चीज़ की तुम जल्दी कर रहे हो, वह मेरे पास नहीं है। हुक्म तो सिर्फ़ अल्लाह का है। वह हक़ बयान करता है और वही सबसे अच्छा फ़ैसला करने वाला है।
रोशन दलील से मुराद नुबूवत का नूर, क़ुरआन का नूर, और वह इल्म है जो अल्लाह ने नबी ﷺ को अता किया। नबी ﷺ ख़ुद भी अल्लाह की सच्चाई की ज़िंदा दलील हैं, जैसा कि सूरा 4:175 में आया है कि तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से ख़ुली हुई दलील आ चुकी है।
नबी ﷺ का काम रहमत है, न कि अपने इख़्तियार से अज़ाब उतारना। अगर अज़ाब भेजना उनके इख़्तियार में होता, तो गुनहगारों पर पहले ही उतर चुका होता। हाँ, अल्लाह की इजाज़त से उनकी दुआ या लानत से अज़ाब आ सकता है, और उन्हें जन्नत व जहन्नम पर भी इख़्तियार दिया गया है, मगर असल मिशन रहमत लिल-आलमीन का है (सूरा 21:107)।
अंतिम हुक्म और फ़ैसला सिर्फ़ अल्लाह का होता है। लेकिन अल्लाह अपने चुने हुए अंबिया, औलिया और हुक्काम को अपने हुक्म से इख़्तियार देता है। जैसा कि सूरा 4:59 में हुक्म है: अल्लाह की इताअत करो, रसूल की इताअत करो, और उनमें से जो हुक्मरान हैं उनकी इताअत करो—लेकिन यह इताअत भी अल्लाह के हुक्म और इजाज़त के तहत ही होती है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 57 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 55 which provides the complete commentary from verse 55 through 59.

सूरा आयत 57 तफ़सीर (टिप्पणी)