लिप्यंतरण:( Wa laqad arsalnaaa ilaaa umamim min qablika fa akhaznaahum bil ba'saaa'i waddarraaa'i la'allahum yata darra'oon )
और निश्चित रूप से हमने तुमसे पहले भी बहुत सी उम्मतों की तरफ़ रसूल भेजे। फिर जब उन्होंने (सत्य का इन्कार किया तो) हमने उन्हें कठिनाई और संकट के साथ पकड़ा, ताकि वे विनम्रता अपनाएँ [82]।
इस आयत में अल्लाह ने एक इलाही उसूल (Divine Pattern) बयान फ़रमाया — कि पहले की क़ौमों को जब रसूल भेजे गए और उन्होंने इनकार किया, तो अल्लाह ने उन्हें सख़्ती और मुसीबत में मुब्तला कर दिया। लेकिन ये आज़माइशें तबाही के लिए नहीं, बल्कि रूहानी जागृति और तौबा की राह खोलने के लिए थीं।
इससे यह हिकमत निकलती है कि दुनियावी तकलीफ़ें हक़ीक़त में अल्लाह की रहमत होती हैं, जो घमंड को तोड़ती हैं, इनसान को झुकना सिखाती हैं, और ईमान व तौबा की तरफ़ ले जाती हैं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 42 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 40 which provides the complete commentary from verse 40 through 45.

सूरा आयत 42 तफ़सीर (टिप्पणी)