लिप्यंतरण:( Wa hum yanhawna 'anhu wa yan'awna 'anhu wa iny yuhlikoona illaa anfusahum wa maa yash'uroon )
और वे (ख़ुद भी) इससे रोकते हैं और (दूसरों को भी) इससे दूर रखते हैं [51], और वे (हक़ीक़त में) किसी को नहीं, बस अपनी ही जानों को बर्बाद कर रहे हैं, मगर उन्हें इसका शऊर नहीं।
ये आयत उन मुसर्रिफ़ मुषरिकों के बारे में है
जो न सिर्फ़ ख़ुद ईमान से दूर रहे, बल्कि दूसरों को भी रोकते रहे —
रसूलुल्लाह ﷺ की मजलिसों में जाने से, क़ुरआन सुनने से।
हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (र.अ.) के मुताबिक,
इसमें अबू तालिब का भी इशारा है —
जो नबी ﷺ को क़ुरैश के सतावे से बचाते तो थे,
मगर ख़ुल्लम-ख़ुल्ला ईमान नहीं लाए।
ऐसे लोग, चाहे जान-बूझकर या बेख़बरी में,
सबसे ज़्यादा नुकसान अपनी ही जानों को पहुँचा रहे हैं,
मगर उन्हें इसका एहसास तक नहीं होता।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 26 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 22 which provides the complete commentary from verse 22 through 26.

सूरा आयत 26 तफ़सीर (टिप्पणी)