लिप्यंतरण:( Wa qaaloo law laaa unzila alaihi malakunw wa law anzalna malakal laqudiyal amru summa laa yunzaroon )
और उन्होंने कहा: "इस पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा गया?" [16] और अगर हम कोई फ़रिश्ता उतार भी देते, तो बात फ़ैसले की हो जाती [17], और फिर उन्हें मोहलत न दी जाती।
काफ़िरों ने कहा कि अगर मुहम्मद ﷺ वाक़ई अल्लाह के रसूल हैं, तो फ़रिश्ता क्यों नहीं आता?
जबकि अल्लाह ने फ़रिश्तों को कई बार भेजा, और कभी-कभी वे इंसानी शक्ल में आते थे, जिन्हें सहाबा ने भी देखा।
मगर इनकार करने वालों की ज़िद यह थी कि फ़रिश्ता अपनी असली (मलकीय) शक्ल में नज़र आए, जो कि इंसान की ताक़त से बाहर है।
ये माँग कोई ईमान लाने की ख़ातिर नहीं थी, बल्कि ज़िद और बहस का एक बहाना थी।
“बात फ़ैसले की हो जाती” से मुराद है कि अगर फ़रिश्ता भेजा जाता और वो लोग फिर भी ईमान न लाते,
तो तुरंत अज़ाब आ जाता, और उन्हें तौबा या मोहलत का कोई मौक़ा न मिलता।
या यह भी मुमकिन था कि फ़रिश्ते की हैबत और जलाल देखकर वे फौरन हलाक हो जाते।
इसलिए अल्लाह की रहमत यह थी कि उनके इस ग़ैर-समझदार तजुर्बे को पूरा न किया जाए।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 8 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 7 which provides the complete commentary from verse 7 through 11.

सूरा आयत 8 तफ़सीर (टिप्पणी)