लिप्यंतरण:( Qul ayyu shai'in akbaru shahaadatan qulil laahu shaheedum bainee wa bainakum; wa oohiya ilaiya haazal Qur'aanu li unzirakum bihee wa mam balagh; a'innakum latashhadoona anna ma'al laahi aalihatan ukhraa; qul laaa ashhad; qul innamaa Huwa Ilaahunw Waahidunw wa innanee baree'um mimmaa tushrikoon )
आप फ़रमा दीजिए (ऐ हबीब): "सबसे बड़ी गवाही किसकी है?" [36]
आप फ़रमाइए: "अल्लाह मेरे और तुम्हारे दरमियान गवाह है [37],
और मेरे पास यह क़ुरआन वह्य के ज़रिए भेजा गया है ताकि मैं इसके ज़रिए तुम्हें और जिसे यह पहुँचे, उसे डराऊँ [38][39]।
तो क्या तुम सचमुच गवाही देते हो कि अल्लाह के साथ कुछ और भी माबूद हैं?" [40]
आप फ़रमा दीजिए: "वह तो बस एक ही अल्लाह है, और मैं बिला किसी शक तुम्हारे शिर्क से बरी हूँ।"
जब कुफ़्फ़ारे मक्का ने नबी ﷺ से आपकी नबूवत पर गवाह माँगी,
तो यह आयत नाज़िल हुई — अल्लाह की गवाही सबसे बड़ी है।
उससे बड़ी और कोई दलील नहीं।
अल्लाह ने नबी ﷺ की सच्चाई पर कई तरीक़ों से गवाही दी:
अगर नबी ﷺ सच्चे न होते,
तो अल्लाह उनके ऊपर क़ुरआन ना नाज़िल करता।
वही नाज़िल होना ही सबसे बड़ा सबूत है।
इस क़ुरआन का पैग़ाम हर ज़माने, हर जगह, और हर क़ौम के लिए है।
जो लोग इससे अब तक वाक़िफ़ नहीं हुए, उनके साथ अलग अंदाज़ से बर्ताव किया जाएगा।
सच्चा मोमिन हमेशा तौहीद को ज़ाहिर करता है, और शिर्क से खुलकर बेज़ारी का इज़हार करता है।
"तक़य्या" यानी छुपाना — यह मुफ़्क़िरों (मुनाफ़िकों) की आदत है, मोमिनों की नहीं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 19 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 17 which provides the complete commentary from verse 17 through 21.

सूरा आयत 19 तफ़सीर (टिप्पणी)