लिप्यंतरण:( Wa qaalooo in hiya illaa hayaatunad dunyaa wa maa nahnu bimab'ooseen )
यह केवल हमारी दुनिया की ज़िंदगी है, और हमें दोबारा ज़िंदा नहीं किया जाएगा [55]
यह आयत उन लोगों के बारे में है जो पुनर्जीवन और आख़िरत को नहीं मानते और जीवन को केवल दुनियावी हद तक सीमित कर देते हैं। आधुनिक युग के कुछ मुशरिक भी पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, मगर वे सच्चे हिसाब और आख़िरत को नकारते हैं। वे मानते हैं कि इंसान को उसके कर्मों का फल इसी दुनिया में मिलता है — जैसे गुनहगार कुत्ता या बिल्ली बनकर लौटेगा। मगर यह सोच तर्क और रूहानियत दोनों के लिहाज़ से ग़लत है। अगर कोई इंसान अपनी सज़ा को शऊर के साथ महसूस ही न करे, तो वह असली सज़ा नहीं कहलाएगी। असली इलाही सज़ा वह होती है जिसमें कोई राहत न हो, और असली इनाम वह जो तकलीफ़ से पाक हो — और ये चीज़ें दुनिया की ज़िंदगी में मुमकिन नहीं। इसलिए, क़यामत और दोबारा उठाए जाने का यक़ीन सच्चे ईमान के लिए ज़रूरी है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 29 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 27 which provides the complete commentary from verse 27 through 30.

सूरा आयत 29 तफ़सीर (टिप्पणी)