लिप्यंतरण:( Wa haazaa Kitaabun anzalnaahu Mubaarakum musaddiqul lazee bainaa yadaihi wa litunzira ummal Quraa wa man hawlahaa; wallazeena yu'minoona bil Aakhirati yu'minoona bihee wa hum'alaa Salaatihim yuhaafizoon )
और यह एक बरक़तमंद किताब है जिसे हमने नाज़िल किया, जो अपने से पहले को सच साबित करती है, ताकि तुम उम्मुल-क़ुरा (मक्का) और उसके आस-पास वालों को डराओ [192]। और जो लोग आख़िरत पर ईमान रखते हैं, वे इस पर ईमान रखते हैं, और वे अपनी नमाज़ों की पाबंदी करते हैं [193]
यह आयत कुरआन की आख़िरी और मुकम्मल किताब होने की तस्दीक़ करती है। यह पिछले आसमानी किताबों को सच साबित करने आई है, न कि किसी आने वाली किताब की तैयारी के लिए। इसका मिशन मक्का और उसके आस-पास को चेतावनी देना है। इससे साबित है कि नुबूवत का सिलसिला हुज़ूर ﷺ पर खत्म हो गया।
जो लोग आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं, वे कुरआन पर भी ईमान लाते हैं। उनका ईमान उनके अमल में नज़र आता है—वे नमाज़ की पाबंदी करते हैं। यह सिर्फ़ नमाज़ पढ़ने की नहीं, बल्कि उसे दीन के स्तंभ के तौर पर क़ायम रखने की तारीफ़ है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 92 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 91 which provides the complete commentary from verse 91 through 92.

सूरा आयत 92 तफ़सीर (टिप्पणी)