लिप्यंतरण:( Wa laa tatrudil lazeena yad'oona Rabbahum bilghadaati wal 'ashiyyi yureedoona Wajhahoo ma 'alaika min hisaabihim min shai'inw wa maa min hisaabika 'alaihim min shai'in fatatrudahum fatakoona minaz zaalimeen )
और उन लोगों को अपने से दूर न करो [101] जो सुबह और शाम अपने रब को पुकारते हैं, उसकी रज़ा चाहते हुए [102]। न तुम्हारे ऊपर उनका कोई हिसाब है [103], और न उनके ऊपर तुम्हारा कोई हिसाब। अगर तुम उन्हें दूर कर दोगे, तो निस्संदेह तुम ज़ालिमों में से हो जाओगे [104]।
यह आयत उन परहेज़गार और इबादतगुज़ार बंदों के लिए ख़ुशख़बरी है जो सुबह-शाम अल्लाह का ज़िक्र करते हैं। उन्हें न दुनिया में और न आख़िरत में नबी ﷺ की सोहबत से दूर किया जाएगा। जो भी नबी ﷺ की क़ुरबत चाहता है, उसे हमेशा अल्लाह का ज़िक्र करते रहना चाहिए।
यहाँ से मुरीद का अर्थ लिया गया — यानी वह जो अल्लाह की रज़ामंदी चाहता है और किसी सही रहनुमा (मुरशिद) के हाथ पर बैअत करता है। उसका मक़सद सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशी है, न कि दुनियावी ओहदा।
यह आयत तब नाज़िल हुई जब मक्का के सरदारों ने देखा कि नबी ﷺ के पास ग़रीब और कमज़ोर लोग बैठे हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप ﷺ इन्हें हटा दें तो हम आपकी महफ़िल में बैठेंगे। नबी ﷺ ने इस पेशकश को ठुकरा दिया, और अल्लाह ने फ़रमाया — "न तुम्हारे ऊपर उनका हिसाब है और न उनके ऊपर तुम्हारा।"
यहाँ ज़ुल्म का मतलब कुफ़्र नहीं, बल्कि वह काम है जो नबी ﷺ जैसे रहमत वाले शख़्स के शान के लायक़ न हो। ग़रीबों को अपनी मजलिस से दूर करना नबी ﷺ के अख़लाक़ के ख़िलाफ़ होता। इससे सीख मिलती है कि ग़रीबों से मोहब्बत और उनका एहतराम पैग़म्बरी की पहचान और हिदायत की निशानी है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 52 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 50 which provides the complete commentary from verse 50 through 54.

सूरा आयत 52 तफ़सीर (टिप्पणी)