लिप्यंतरण:( Allazeena aatainaa humul Kitaaba ya'rifoonahoo kamaa ya'rifoona abnaaa'ahum; allazeena khasirooo anfusahum fahum laa yu'minoon )
जिन्हें हमने किताब दी, वे इस नबी को ऐसे पहचानते हैं जैसे अपने बेटों को पहचानते हैं [41]। लेकिन जिन्होंने अपनी जानों को घाटे में डाला है, वे ईमान नहीं लाते [42]।
जैसे एक बाप अपने बेटे को बिना किसी शक के पहचानता है,
उसी तरह अहले किताब इस नबी को पहचानते हैं।
उनके पास किताबी निशानियाँ हैं जो नबी मुहम्मद ﷺ की पहचान कराती हैं।
मगर सिर्फ पहचान ही काफ़ी नहीं होती,
हक़ीक़ी ईमान तब होता है जब उसे कुबूल किया जाए और इज़हार किया जाए।
इन लोगों ने जानबूझकर ईमान से इनकार किया,
क्योंकि उनके दिलों में हसद और तकब्बुर था।
उनकी रूहें तबाह हो चुकी हैं,
और अगर तौबा न करें तो कुफ़्र की हालत में ही मरेंगे।
शैतान की तरह, जिनके दिलों में हक़ से जलन होती है,
वही हमेशा सच्चाई का इनकार करते रहते हैं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 20 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 17 which provides the complete commentary from verse 17 through 21.

सूरा आयत 20 तफ़सीर (टिप्पणी)