लिप्यंतरण:( Bal iyyaahu tad'oona fa yakshifu maa tad'oona ilaihi in shaaa'a wa tansawna maa tushrikoon )
बल्कि तुम उसी को पुकारोगे। फिर यदि वह चाहे, तो उस मुसीबत को हटा देगा, जिसके लिए तुम उसे पुकारते हो [80], और तुम उन साझीदारों को भूल जाओगे, जिन्हें तुम उसका शरीक ठहराते थे [81]।
इस आयत में बताया गया है कि जब सख़्त मुसीबत आती है, तो काफ़िर और मुशरिक भी अल्लाह को ही पुकारते हैं, अपने बनाए हुए बुतों और झूठे खुदाओं को छोड़ देते हैं। इससे यह साबित होता है कि अल्लाह की रहमत इतनी व्यापक है कि वह चाहे तो काफ़िरों की दुआ भी क़ुबूल कर सकता है। यह उसकी तालीम, रहमत और क़ुदरत का बयान है, और यह भी कि बेबस इनसान जब घमंड छोड़ देता है, तो फितरतन एक अल्लाह की तरफ़ ही लौटता है।
जब इनसान पर कोई असली मुसीबत या मौत का डर छा जाता है, तो वह अपने बुतों और बनावटी खुदाओं को भूल जाता है, और सिर्फ़ अल्लाह को पुकारता है। यह इंसानी रूह में मौजूद तौहीद की फ़ितरी पहचान का सुबूत है, जिसे आराम और गफलत के वक़्त शिर्क की आदतें ढक देती हैं। मगर हक़ीक़त के लम्हे उन सभी परतों को हटा देते हैं, और इनसान अल्लाह को पहचान लेता है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 41 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 40 which provides the complete commentary from verse 40 through 45.

सूरा आयत 41 तफ़सीर (टिप्पणी)