लिप्यंतरण:( Wa mal hayaatud dunyaaa illaa la'ibunw wa lahwunw wa lad Daarul Aakhiratu khaiyrul lillazeena yattaqoon; afalaa ta'qiloon )
और यह दुनियावी ज़िंदगी तो कुछ नहीं मगर खेल और तमाशा है [63], और बेशक आख़िरत का घर उनसे बेहतर है जो डरते हैं [64]। तो क्या तुम समझ नहीं रखते?
जो दुनियावी ज़िंदगी सिर्फ़ नफ़्सानी लज़्ज़तों और ग़फ़लत में गुज़रती है, वह सिर्फ़ एक खेल और तमाशा है — ऐसी चीज़ जिसका कोई असली और हमेशा रहने वाला मक़सद नहीं होता। लेकिन जो ज़िंदगी अल्लाह की इताअत में गुज़ारी जाती है, वो भले इस दुनिया में हो, असल में दुनियावी नहीं मानी जाती। अंबिया और सालेहीन की ज़िंदगी इस दुनिया में होते हुए भी पूरी तरह दीनी होती है, इसलिए उस खेल और तमाशे की कैफ़ियत से अलग होती है।
आख़िरत का घर ही असल, हमेशा रहने वाली ज़िंदगी है — और वह उन लोगों के लिए बेहतर है जो अल्लाह से डरते हैं। इससे यह साफ़ होता है कि असल क़ीमती चीज़ तक़वा और नेक आमाल हैं — बाकी सब फानी और बेकार है। जो ज़िंदगी तक़वा से खाली हो, वह सिर्फ़ एक खेल है, जिसका कोई सवाब नहीं।
अंत में अल्लाह सवाल करता है:
"तो क्या तुम अक़्ल नहीं रखते?"
— ताकि इंसान सोचे, समझे और हक़ीक़त को पहचाने।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 32 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 32 which provides the complete commentary from verse 31 through 32.

सूरा आयत 32 तफ़सीर (टिप्पणी)