लिप्यंतरण:( Wa Huwal lazeee anzala minas samaaa'i maaa'an fa akhrajnaa bihee nabaata kulli shai'in fa akhrajnaa minhu khadiran nukhriju minhu habbam mutaraakibanw wa minan nakhli min tal'ihaa qinwaanun daaniyatunw wa jannaatim min a'naabinw wazzaitoona warrummaana mushtabihanw wa ghaira mutashaabih; unzurooo ilaa samariheee izaaa asmara wa yan'ih; inna fee zaalikum la Aayaatil liqawminy yu'minoon )
वही (अल्लाह) है जिसने हर उगने वाली चीज़ [215] उगाई, फिर उससे हरा-भरा (पत्तों वाला) निकाला, फिर उससे गुच्छों में अनाज निकाला, और खजूर के थैलों से एक-दूसरे के क़रीब लगे हुए गुच्छे [216], और अंगूर, जैतून और अनार के बाग़ात [217] — कुछ चीज़ें आपस में मिलती-जुलती और कुछ अलग-अलग [218]। देखो उसे, जब वह फल लाता है और उसके पकने का समय आता है। बेशक, इसमें ईमान लाने वालों के लिए निशानियां हैं [219]।
यह आयत बताती है कि सारी वनस्पति और प्राकृतिक बढ़त अल्लाह के हुक्म और पानी के ज़रिये होती है। सूफ़ी बुज़ुर्ग इसे रूहानी हक़ीक़त भी बताते हैं — जैसे अनाज पानी के बिना नहीं उगता, वैसे ही अमल-ए-सालेह (नेक काम) भी नबियों और औलिया की बरकत के बिना फल नहीं देते। इब्लीस के पास इबादत थी, मगर वह फलहीन रही क्योंकि उसमें नुबूवत का पानी नहीं था।
हरे पौधों से गुच्छेदार अनाज (गेहूं, जौ) और खजूर के पास-पास लगे गुच्छे अल्लाह की तदबीर और तरतीब की निशानी हैं। ये दिखाते हैं कि कैसे वही से मुंतज़िम और आपस में जुड़े हुए फल निकलते हैं — जैसे इल्म और हिकमत सिर्फ़ इलाही रहनुमाई से हासिल होती है।
अंगूर, जैतून, अनार के बाग़ात सिर्फ़ जिस्मानी ग़िज़ा नहीं, बल्कि रूहानी अलामतें भी हैं। जैसे ख़ुराक जिस्म को तवानाई देती है, वैसे ही शरीअत रूह को ग़िज़ा देती है, और तरीक़त उस बढ़त का शीरिन फल है — एक अदब व अनुशासन के लिए, दूसरा लज़्ज़त और मारिफ़त के लिए।
दरख़्त बाहरी रूप में मिलते-जुलते होते हैं, मगर उनके फूल और फल अलग होते हैं। यह इंसानों की मिसाल है — ज़ाहिर से धोखा हो सकता है। दो लोग एक जैसे दिखें, मगर एक नबी, वली या आलिम हो सकता है और दूसरा गुमराह। जैसे सोना और पीतल दोनों चमकते हैं, मगर अस्लियत में फ़र्क़ रखते हैं।
"देखो जब वह फल लाता है और पकता है" — यह हुक्म ज़ाहिरी और मजाज़ी दोनों है। फल का पकना हश्र (क़यामत के बाद उठना) की याद दिलाता है — जो बीज से फल निकाल सकता है, वही मौत से ज़िंदगी भी दे सकता है। यह इस बात की भी दलील है कि एक नबी से निकलकर हज़ारों औलिया, उलमा और सूफ़िया पैदा होते हैं — इलाही रहनुमाई के पानी से खिला हुआ एक रूहानी बाग़।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 99 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 98 which provides the complete commentary from verse 98 through 99.

सूरा आयत 99 तफ़सीर (टिप्पणी)