लिप्यंतरण:( Wa litasghaaa ilaihi af'idatul lazeena laa yu'minoona bil Aakhirati wa liyardawhu wa liyaqtarifoo maa hum muqtarifoon )
ताकि जिनके दिल [245] आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, वे उसकी तरफ़ झुक जाएं, और उससे राज़ी हो जाएं, और जो गुनाह उन्हें कमाना है, वह कमा लें [246]।
यह सिर्फ़ उन लोगों के बारे में है जिनका ईमान कमज़ोर होता है। ऐसे लोग अक्सर काफ़िरों की माँगों की तरफ़ झुक जाते हैं और उनके विचारों का समर्थन करने लगते हैं। इससे यह साबित होता है कि दिल अपने मिज़ाज और अकीदे से मिलते-जुलते लोगों की तरफ़ ही खिंचते हैं।
किसी गुनाह का समर्थन करना, ख़ुद एक गुनाह है। जैसे चोरी का माल छुपाना या बेचना, यह दोनों अमल अपने-आप में अपराध हैं और इनका अपना गुनाह है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 113 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 112 which provides the complete commentary from verse 112 through 113.

सूरा आयत 113 तफ़सीर (टिप्पणी)