लिप्यंतरण:( Wa laqad kuzzibat Rusulum min qablika fasabaroo 'alaa maa kuzziboo wa oozoo hattaaa ataahum nasrunaa; wa laa mubaddila li Kalimaatil laah; wa laqad jaaa'aka min naba'il mursaleen )
और बेशक तुमसे पहले भी रसूलों को झुठलाया गया, फिर भी उन्होंने सब्र किया उस वक़्त तक जब उन्हें झुठलाया गया और उन्हें सताया गया, यहाँ तक कि हमारी मदद आ पहुँची [67]। और अल्लाह की बातों को कोई बदल नहीं सकता, और कुछ रसूलों की ख़बरें तो तुम्हारे पास पहुँच ही चुकी हैं।
इस आयत में रसूलुल्लाह ﷺ को तसल्ली दी जा रही है कि इन्कार और तकलीफ़ें कोई नई बात नहीं हैं। आपसे पहले जितने भी अल्लाह के नबी आए, उन्हें भी झुठलाया गया, और सताया गया, मगर उन्होंने सब्र और इस्तिक़ामत से काम लिया।
वो अपने मिशन से पीछे नहीं हटे, बल्कि दावा-ए-हक़ को जारी रखा, यहाँ तक कि अल्लाह की मदद आ पहुँची — और अख़िरकार फ़तह उन्हीं को मिली।
यह एक इलाही क़ानून है:
हक़ का रास्ता वक़्ती तौर पर रोका जा सकता है, मगर आख़िरकार कामयाबी उसी की होती है।
"अल्लाह की बातों को कोई नहीं बदल सकता" — इसका मतलब है कि उसके वादे, उसके अहकाम, और उसकी किताबें सब अटल हैं। ना कोई उन्हें मिटा सकता है, ना ही बदल सकता है।
इस आयत में यह भी कहा गया कि पिछले नबियों की ख़बरें तुम्हें मिल चुकी हैं। यानी उन रसूलों की कहानियाँ, जिनमें उन्होंने सब्र किया, क़ौम की मुख़ालिफ़त झेली, और फिर अल्लाह की मदद से फ़तह पाई — यह सब रसूल ﷺ के लिए तसल्लीयाँ और मिसालें हैं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 34 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 33 which provides the complete commentary from verse 33 through 36.

सूरा आयत 34 तफ़सीर (टिप्पणी)