लिप्यंतरण:( Qul halumma shuhadaaa'akumul lazeena yash hadoona annal laaha harrama haazaa fa in shahidoo falaa tashhad ma'ahum; wa laa tattabi' ahwaaa'al lazeena kazzaboo bi Aayaatinaa wallazeena laa yu'minoona bil Aakhirati wa hum bi Rabbihim ya'diloon )
कह दो: अपने गवाह लाओ जो यह गवाही दें कि अल्लाह ने इसे हराम किया है [346]। फिर अगर वे गवाही दें तो तुम उनके साथ गवाही न देना [347], और न उन लोगों की ख़्वाहिशात का पीछा करना जो हमारी आयतों को झुठलाते हैं [348], और आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, और अपने रब का साझीदार ठहराते हैं [349]।
जो चीज़ कुरआन या सुन्नत से हराम साबित न हो, वह अपने आप हलाल है। सिर्फ़ तख़य्युल, रिवाज या राय की कोई हैसियत नहीं।
अगर झूठे गवाह खड़े भी हों, तो उनके साथ गवाही न दो। झूठ की ताईद करना, चाहे इशारे, दिली खुशी या तस्लीम से हो, गुनाह में शरीक होना है।
काफ़िरों और गुमराहों की क़ानून-साज़ी या रहनुमाई मानना जायज़ नहीं। अगर कोई ग़ैर-इस्लामी क़ानून को अल्लाह के हुक्म से बेहतर समझे, तो यह कुफ़्र है।
काफ़िरों की ख़्वाहिशात पर चलना गुमराही है, जबकि नबी ﷺ की तालीमात वही (इल्हाम) से हैं (सूरा नज्म 53:3-4)। नबी की इताअत हमेशा हक़ है, और काफ़िरों की इताअत गुमराही।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 150 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 148 which provides the complete commentary from verse 148 through 150.

सूरा आयत 150 तफ़सीर (टिप्पणी)