लिप्यंतरण:( Falaw laaa iz jaaa'ahum ba'sunaa tadarra'oo wa laakin qasat quloobuhum wa zaiyana lahumush Shaitaanu maa kaanoo ya'maloon )
फिर जब उन पर हमारी यातना आई तो उन्होंने विनम्रता क्यों नहीं अपनाई [83]? बल्कि उनके दिल कठोर हो गए और शैतान ने उनके लिए उनके कर्मों को सजा-संवार कर दिखा दिया [84]।
जब पहले की क़ौमों पर अल्लाह का अज़ाब उतरा, तब भी उन्होंने ख़ुद को नहीं झुकाया, तौबा नहीं की। अगर उन्होंने अज़ाब के आने से पहले तौबा की होती, तो वह अज़ाब हटाया जा सकता था — जैसे कि हज़रत यूनुस (अलैहिस्सलाम) की क़ौम ने समय रहते तौबा की, और रहमत नाज़िल हुई। लेकिन फ़िरऔन की तरह अगर कोई शख़्स अज़ाब के शुरू हो जाने के बाद ईमान लाए, तो वो ईमान क़बूल नहीं किया जाता। यह आयत सिखाती है कि तौबा और झुकने का वक़्त, अज़ाब से पहले होता है, वरना देर हो सकती है।
तमाम अज़ाबों में सबसे ख़तरनाक सज़ा यह है कि दिल सख़्त हो जाएं — यानी दिल में नर्मी, नसीहत, और सच्चाई की क़द्र खत्म हो जाए। जब दिल सख़्त हो जाते हैं, तो फिर नबी की बातें भी असर नहीं करतीं। और शैतान ऐसे लोगों के बुरे आमाल को खूबसूरत बना कर दिखाता है, जिससे वो गुमराही में और आगे बढ़ जाते हैं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 43 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 40 which provides the complete commentary from verse 40 through 45.

सूरा आयत 43 तफ़सीर (टिप्पणी)