लिप्यंतरण:( Bal badaa lahum maa kaanoo yukhfoona min qablu wa law ruddoo la'aadoo limaa nuhoo 'anhu wa innahum lakaaziboon )
बल्कि अब उनके सामने वह बात खुल चुकी है जो वह पहले छिपाया करते थे [53]। और यदि उन्हें (दुनिया में) वापस भी भेज दिया जाए, तो वे फिर वही करेंगे जिससे उन्हें रोका गया था। निश्चय ही, वे झूठे हैं [54]।
क़ियामत के दिन, जब उनसे पूछा जाएगा:
"तुम्हारे वो खुदा कहाँ हैं जिनको तुम अल्लाह का शरीक बनाते थे?"
तो वे कसम खाकर कहेंगे:
"हम तो मुशरिक (शिर्क करने वाले) नहीं थे!"
यह झूठा इन्कार होगा —
मगर उसी वक़्त उनके अपने हाथ, पाँव और ज़ुबान
उनके खिलाफ़ गवाही देंगे।
जो शिर्क वे दुनिया में खुले आम करते थे,
उसे अब छिपाना नामुमकिन होगा।
अगर उन्हें वापस दुनिया में भेज भी दिया जाए,
तो वे फिर वही कुफ्र, इनकार और गुनाह दोहराएँगे —
क्योंकि उनका झूठ और नाफ़रमानी अब उनकी फ़ितरत बन चुकी है।
इसलिए अल्लाह फ़रमाता है:
"निश्चित ही, वे झूठे हैं" —
उनका तौबा और वादा सच्चा नहीं,
बल्कि घबराहट और अज़ाब के डर में किया गया दावा है।
यही वजह है कि उनका अज़ाब बिलकुल इंसाफ़ के मुताबिक़ है —
हमेशा का, क्योंकि उनकी फितरत ही गुमराही में ढल चुकी है।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 28 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 27 which provides the complete commentary from verse 27 through 30.

सूरा आयत 28 तफ़सीर (टिप्पणी)