लिप्यंतरण:( Qul inneee akhaafu in 'asaitu Rabbee 'azaaba Yawmin 'Azeem )
आप फ़रमा दीजिए (ऐ महबूब ﷺ):
"अगर मैं अपने रब की ना-फ़रमानी करूं,
तो मुझे एक बहुत बड़े दिन के अज़ाब का डर है [31]।"
इस आयत में नबी करीम ﷺ को हुक्म दिया गया कि वो कहें:
"अगर मैं ना-फ़रमानी करूं..." —
हालांकि ये बात नामुमकिन है, क्योंकि
ये सिर्फ़ एक तालीमी और इबरतनाक अंदाज़ में कही गई बात है,
ताकि लोगों को डर और समझ आए।
➡️ इसी तरह का अंदाज़ सूरा अज़-ज़ुखरुफ़ (43:81) में भी है:
"कह दो: अगर रहमान की कोई औलाद होती, तो मैं सबसे पहले उसकी इबादत करता।"
– ये भी एक मुहाल (असंभव) मिसाल है,
जिसका मक़सद है झूठे अकीदों की रद्दी करना और हक़ को उजागर करना।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 15 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 12 which provides the complete commentary from verse 12 through 16.

सूरा आयत 15 तफ़सीर (टिप्पणी)