लिप्यंतरण:( Falammaa nasoo maa zukkiroo bihee fatahnaa 'alaihim abwaaba kulli shai'in hattaaa izaa farihoo bimaaa ootooo akhaznaahum baghtatan fa izaa hum mublisoon )
फिर जब वे उस नसीहत को भूल गए, जिससे उन्हें याद दिलाया गया था, तो हमने उनके लिए हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिए [85]। यहाँ तक कि जब वे उस पर इतराने लगे जो उन्हें दिया गया था [86], तो हमने उन्हें अचानक पकड़ लिया [87], और वे निराश होकर रह गए [88]।
जब लोग अल्लाह की नसीहतों को नजरअंदाज़ कर देते हैं, तो अल्लाह तुंरत अज़ाब नहीं भेजता। बल्कि, कई बार उन्हें दुनियावी आराम, दौलत, और तमाम नेमतें देता है। यह नेमतें इम्तिहान नहीं, बल्कि इस्तिदराज़ होती हैं — यानी धीरे-धीरे गुमराही में डूबने देना। जब गुनहगार यह समझने लगे कि हमें तो सब कुछ मिल रहा है, इसका मतलब हम सही हैं — तो यही सोच कुफ़्र और घमंड का रास्ता बन जाती है।
अगर कोई अल्लाह की दी हुई नेमतों पर शुक्र अदा करे, तो वह नेकी और क़ुबूलियत की निशानी है। लेकिन अगर कोई इतराए, घमंड करे, तो वह काफ़िरों का तरीका है। अल्लाह ने फ़रमाया:
"और अपने रब की नेमत को बयान करो" (सूरा 93:11)
"और अल्लाह की रहमत और फ़ज़ल पर ही खुश होना चाहिए" (सूरा 10:58)
इस आयत में जो "इतराना" है, वह शुक्र से खाली, ख़ालिस घमंड की बात है।
जब ऐसे लोग अपनी नेमतों में डूब जाते हैं, और घमंड के साथ जीते हैं, तब अल्लाह की तरफ़ से अचानक अज़ाब आता है — जिसे कुरआन में "बग़ततन" कहा गया है। यह गिरफ़्त तमाम गुनहगारों की तबाही की घड़ी होती है। जबकि मोमिन की मौत को वफ़ात, विसाल, या शहादत कहा गया है — जो एक इज़्ज़त भरा अंजाम होता है।
गाफ़िल और गुनहगार इंसान के लिए अचानक मौत एक अज़ाब होती है — क्योंकि वह तौबा और सुधार का मौक़ा खो देता है। लेकिन मोमिन के लिए यही अचानक मौत, एक रहमत बन जाती है — उसे बीमारियों की तकलीफों से बचा कर, आसानी से रब से मिलाने का ज़रिया बनती है। हज़रत सुलेमान, मूसा, और उजैर (अलैहिस्सलाम) की वफ़ात भी इसी तरह की रहमत वाली मौतें थीं।
The tafsir of Surah Al-Anam verse 44 by Ibn Kathir is unavailable here.
Please refer to Surah Anam ayat 40 which provides the complete commentary from verse 40 through 45.

सूरा आयत 44 तफ़सीर (टिप्पणी)